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________________ सम्यक्त्व व्रत योग्य नियम प्रतिदिन प्रभु दर्शन करना, दर्शन किए बिना मुँह में पानी न डालना, सुबह-शाम या त्रिकाल दर्शन करने जिनमंदिर जाना। स्वसामग्री से रोज प्रभु पूजा भाव से करनी । त्रिकाल पूजा करनी, बडी पूजा पढानी, महा पूजन आदि महोत्सव करना। सम्यग् दर्शन की निर्मलता के लिए वर्ष में १-२ बार कल्याणक भूमि आदि की तीर्थयात्रा करनी । तीर्थों में पूजा आदि करनी। ४ सात क्षेत्र में यथाशक्ति धन वापरना। ५ प्रतिदिन गुरुवंदन करना । त्रिकाल वंदन करना, गुरु का आदर सन्मान करना । उनकी सेवा-सुश्रुषा करनी । आहार–पानी-वस्त्र–पात्र आदि उपकरण वहेराना। ६. नित्य जिनवाणी (प्रवचन) का श्रवण करना। ७ चारित्र (दीक्षा) स्वीकारने की भावना रखनी । लेनेवाले को अंतराय–विघ्न न करना। ८ प्रतिदिन महामंत्र का जाप-ध्यान करना । १-२ या १०-२० नवकार मंत्र की पक्की माला गिनना। ९ जिनप्रतिमा भराना, जिनमंदिर बंधाना। १० देव-गुरु का नित्य दर्शन-वंदन-पूजन आदि करना। धर्मग्रन्थ का स्वाध्याय आदि करना । सम्यग् श्रद्धा के योग्य उपयोगी छोटे-छोटे नियम है, इनका पालन करना । सुविहित पर्यों को ही मानना । मिथ्या पर्व, लौकिक पर्व न मानना, न मनाना । कुछ बचने योग्य अतिचार संका-कंख-विगिच्छा-पसंस-तह संथवो कुलिंगीसु। . सम्मत्तस्स अइयारे, पडिक्कमे देवसिअंसव्वं ।। ...जिनमत में शंका करने से, अन्य मत की अभिलाषा-आकांक्षा करने से, धर्म के फल के विषय में संदेह करने से, अथवा साधु-संत के मलीन वस्त्रादि के प्रति दुर्गंछा रखने से, मिथ्यामति, कुलिंगियों की प्रशंसा करने से, तथा उनके अति परिचय से सम्यक्त्व व्रत के अतिचारों का दिवस संबंधि प्रतिक्रमण करना चाहिए। देश विरतिघर श्रावक जीवन ६२३
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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