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________________ भी धर्म नहीं मानना है, तथा आचरना भी नहीं ऐसे लक्षणवाला ही सच्चा जैन कहलाने का अधिकारी है । अब संसारवर्धक धर्म नहीं चाहिए । संसारवर्धक तो कर्म होते हैं । कर्मों को करके हमने संसार बढाया है । और यदि धर्म भी वैसा ही संसारवर्धक मिल जाय और वही करने भी लग जाय तो कितना अनर्थ होगा? अतःअब संसारवर्धक नहीं संसारशोषक, आत्मकल्याणकारक, मोक्षसाधक, आध्यात्मिक विकाससाधक, कर्मक्षयकारक धर्म ही मेरा सच्चा धर्म हो, बस . . इसके सिवाय या इससे विपरीत धर्म मेरा धर्म न हो .. ऐसी मान्यतावाले सच्चे अर्थ में चौथे, पाँचवे गुणस्थानवाले सही जैन कहलाने लायक है । ऐसा धर्म ही आगे बढा सकता है। अपना साध्य साध सकता है। अपना कल्याण कर सकता है। कर्मक्षय करके मुक्ति की प्राप्ति कर सकता है । नवकार महामंत्र में साध्य निर्णय ___ जैन धर्म के सर्वमान्य शिरोमणी महामन्त्र श्री नमस्कार महामन्त्र के ७ वे पद में “सव्वपावप्पणासणो" लिखा हुआ है । अर्थात् सब पाप कर्मों का नाश (क्षय) करना है। यही लक्ष्य है। साध्य पद दिया है । महामन्त्र माननेवाले प्रत्येक जैन का एकमात्र लक्ष्य सर्व पाप कर्मों का नाश करने का ही होना चाहिए । पाप कर्मों का नाश करने के साथ साथ नए पाप कर्म न करने का भी लक्ष्यार्थ उसी ध्वनि में आ जाता है । जो व्यक्ति पाप कर्मों का नाश-क्षय करता है। वह फिर नए करने की वृत्तिवाला नहीं होता है । एक स्त्री घर साफ करती है, तो फिर उसे वो गन्दा करने की,खराब करने की वृत्तिवाली नहीं होती है । क्योंकि वह जानती है कि मैं ही खराब करूँगी-बिगाडूंगी वापिस मुझे ही साफ करना पडेगा। इसलिए पहले खराब-करने-बिगाडने का न रखू तो फिर साफ सफाई करने में भी श्रम कम पडेगा। ठीक इसी तरह पाप कर्मों की अशुभ प्रवृत्ति ही यदि कम करेंगे, या नहीं करेंगे तो कर्म का बंध ही कम होगा या नहीं होगा। तो ही हम बच पाएँगे। तो फिर आगे जाकर. .कर्म क्षय-नाश करने के लिए भी उतना ज्यादा श्रम नहीं करना पडेगा । अतः प्रत्येक जैन मात्र का.. नमस्कार महामन्त्र का पाठ करनेवाले प्रत्येक का सातवे पद में सूचित अर्थ का लक्ष्य होना ही चाहिए। साध्य के निर्णयवाला साधक ही सच्चा साधक होता है। ६१४ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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