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________________ श्रमणधर्म का अनुगामी श्रावकधर्म श्रमण अर्थात् साधु । ऐसे त्यागप्रधान.. निर्जराप्रधान श्रमणधर्म का अनुगामी श्रावक धर्म है । क्योंकि श्रमणधर्म सर्वथा पाप के त्यागमय है । निर्जरा की प्रधानतावाला है। महाव्रत स्वरूप है। सर्वविरति धर्म है । जब कि श्रावक का धर्म अणुव्रत रूप है। देशविरतिरूप धर्म है । जैसे पाँचवी कक्षा और छट्ठी कक्षा दोनों कक्षाएँ एक ही स्कूल में होती है । छट्ठी कक्षा आगे की कक्षा है । और पाँचवी कक्षा..उसकी अनुगामी-पीछे की कक्षा है । एक कक्षा का अन्तर है । ठीक वैसे ही चौदह गुणस्थान की इस श्रेणि में पाँचवा गुणस्थानक श्रावक का है । और एक कक्षा आगे की तरफ छट्ठा गुणस्थानक साधु का है। अतः स्वाभाविक है कि श्रावक का धर्म साधु धर्म के पीछे अनुगामी है। साधु धर्म की सर्वविरति की प्राप्ति का लक्ष श्रावक का रहना ही चाहिए। वैसे भी साधु का सर्वविरति स्वरूप जो पंच महाव्रत स्वरूप धर्म है उसी धर्म की सीमा-मर्यादाओं को अल्प मर्यादा में करके श्रावक का धर्म बनाया है। परन्तु फिर भी निर्जरा का लक्ष रहना चाहिए । मात्र पुण्योपार्जन का ही लक्ष न रखते हुए निर्जरा - कर्मक्षय का लक्ष्य रखना चाहिए। और मोक्ष प्राप्त करने के लिए सर्वविरति रूप श्रमण धर्म की प्राप्ति की सतत तमन्ना होनी चाहिए। जैसा मोक्षफल है ठीक उसके अनुरूप श्रमणधर्म सर्वथा विरतिरूप है। सावध पापादि के त्यागरूप है । अतः सर्वविरति धर्म मोक्ष के अनुरूप-अनुकूल पूरक धर्म है । और ऐसे सर्वविरतिप्रधान श्रमणधर्म के पीछे अनुगामी-श्रावक का धर्म है । अतः दोनों का.राजमार्ग एक ही है। धर्म एक ही है । मात्र मर्यादाएँ भिन्न भिन्न है । एक ही राजमार्ग पर आगे-पीछे चलती दो गाडियों के जैसा पाँचवा और छट्ठा ये दो गुणस्थान है । अतः परंपरा से श्रावक धर्म भी मोक्ष के अनुकूल- अनुरूप है । उसी दिशा में आगे ले जानेवाला है। जैसे आगे के स्टेशन पर गाडी बदलनी पडती है । छोटी लाइन की गाडी से बडी लाइन की गाडी में बैठना पडता है। ठीक उसी तरह मोक्ष के एक ही राजमार्ग पर चलते हुए साधु और श्रावक दोनों में से श्रावक को आगे जाकर साधु बनना पडता है। यह प्रक्रिया आसान है । अतः देशविरतिधर श्रावक कुछ सीमित मर्यादाओं में नए पाप का त्याग करता हुआ और पुराने पाप कर्मों की निर्जरा करता हुआ..आगे बढता जाय और सर्वविरतिधर साधु भी सर्वथा पाप कर्मों का क्षय करता हुआ आगे बढ़ता जाय तो दोनों मोक्ष मार्गपर देश विरतिघर श्रावक जीवन ६११
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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