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भगवान ने दो प्रकार का विरति धर्म बताया- (१) सर्व विरति (२) देशविरति
सर्वथा संपूर्ण रूप से सभी पापों का त्याग करना, किसी भी प्रकार की छूट न रखते हुए सूक्ष्म से सूक्ष्म पापों की भी अनुमति नहीं ऐसा पाप का सर्वथा संपूर्ण त्यागरूप सर्वविरति धर्म परमात्मा ने दर्शाया। जो जीव प्रबल पुरुषार्थवाले थे वे घर बार-संसार का त्याग करके.. महाभिनिष्क्रमण करते हुए संसार छोडकर निकल पडे और भगवान के पास आजीवनभर के लिए दीक्षा अंगीकार करके साधु बने । अणगार बने । अतः यह सर्वविरति रूप धर्म-अणगार धर्म-अणगारी-साधुओं का धर्म कहलाया। ___ जो जीव इस प्रकार के ऐसे सर्वथा विरतिरूप सर्वविरति धर्म को स्वीकार करने में असमर्थ-अशक्त थे उन जीवों ने परमात्मा को प्रार्थना की...विनंति की.. हे जगन्नाथ । हम घरबारी संसारी जीव इस सर्वोत्तम-सर्वश्रेष्ठ सर्वविरति धर्म को स्वीकारने में असमर्थ हैं, अशक्त हैं । अतः हे प्रभो ! हमारे जैसे जीवों के लिए भी आपके शासन में कोई स्थान है या नहीं? हमारा भी उद्धार कल्याण संभव है या नहीं? हे प्रभु ! हमारे अनुरूप भी कोई धर्म मार्ग जरूर दर्शाइये।
तब तीर्थंकर परमात्मा ने कहा कि...देखो ! धर्म तो विरतिप्रधान-पाप निवृत्तिरूप एक ही है । साधु-संत यदि इसी विरति को सर्वथा संपूर्ण स्वीकार करते हैं तो गृहस्थ अपने घर-संसार की सीमा में रहकर उसी विरतिधर्म को कुछ कम प्रमाण में आराध सकता है परन्तु धर्म तो एक ही रहेगा विरति धर्म । श्रावक-गृहस्थी अपने-पुत्र-पत्नी परिवार के बीच रहकर समस्त मर्यादाओं का पालन करते हुए सीमित–परिमित धर्म को करता है वह देशविरति धर्म कहलाता है। विरति शब्द के आगे सर्व और देश ये दो विशेषण जोडे गए। सर्व शब्द संपूर्ण-सर्वथा सर्वांश अर्थ में विरति का द्योतक है अतः उसे सर्वविरति धर्म कहा। और सर्व शब्द का विरोधि 'देश' शब्द है। सर्वशब्द संपूर्ण सर्वांश, सर्वथा अर्थ में प्रयुक्त है तो 'देश' शब्द का अल्प अर्थ में कम-थोडे प्रमाण के अर्थ में प्रयोग होता है । अतः यहाँ 'देश' शब्द शहर-राज्य या राष्ट्र के अर्थ में नहीं है। परन्तु कम-अल्प-थोडे प्रमाण के अर्थ में प्रयुक्त है । अतः देशविरति अर्थात् थोडे प्रमाण में-कम रूप से अल्पमात्रा में पापों का त्याग करने रूप विरति धर्म को कहा है । सर्वविरति धर्म को स्वीकारनेवाले साधु-मुनिराज कहे जाते हैं तो देशविरति धर्म को स्वीकारनेवाला श्रावक-गृहस्थी कहलाता है । साधु के जीवन में आजीवन किसी भी पाप करने की छूट नहीं रहती है जबकि गृहस्थ के देशविरति धर्म में कुछ प्रमाण में छूट रहती है । अतः कुछ
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आध्यात्मिक विकास यात्रा