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कर्मक्षयकारिका आज्ञा-पाप निवर्तिका आज्ञा___ आराधक मोक्षार्थी जीव जब आज्ञा का अत्यन्त शुद्ध पालन-आराधन करता है तब उसके फल स्वरूप सर्व प्रकार के कर्मों का क्षय-निर्जरा होती है । और दूसरी तरफ पाप कर्म का आश्रव-आत्मा में आगमन रुकता है अर्थात् संवर की प्रक्रिया होती है। क्योंकि आज्ञा ही उस कक्षा की है । और देनेवाले भी संसार के त्यागी आरम्भ-समारंभादि सब पाप कर्मों के त्यागी हैं । अतः मुमुक्षु मोक्षार्थी साधक को मोक्ष के मार्ग पर आगे बढाने के लिए उन महापुरुषों ने काफी उचित आज्ञा दी है। इसी प्रकार की आज्ञा से आत्मा का उत्थान अभ्युत्थान संभव है । ऐसी आज्ञा को संवरप्रधान और निर्जराप्रधान बताई है। संवर से पाप कर्मों का आगमन रुकता है । और निर्जरा जो संचित कर्मों का क्षय करनेवाली है । ऐसी आत्मोपकार कारक आज्ञा जो देव गुरु की तरफ से प्राप्त होती है उसको प्राप्त करना भी परम सौभाग्य का उदय है । उत्तम भाग्य के निर्माण होने पर ही आत्मा को ऐसे महापुरुषों का योग प्राप्त होता है । उनकी आज्ञा प्राप्त होती है । उनकी आज्ञा के पालन में ही आशीर्वाद का रहस्य छिपा हुआ रहता है । अतः आशीर्वाद माँगे बिना ही उनकी आज्ञा के पालन से ही मिल जाते हैं । ऐसे ही देव-गुरु हमारे परम कल्याणकारक कल्याणमित्र है, उद्धारक है। अतः उनकी आज्ञा की प्राप्ति के लिए सतत तलप होनी चाहिए । यद्यपि आज वैसे सर्वज्ञ भगवंत स्वदेह से विद्यमान नहीं है फिर भी उनकी आज्ञा-आदेशप्रधान जो धर्म आज भी अस्तित्व में है, उपलब्ध है यही हमारा परम सौभाग्य प्रबल पुण्योदय है ऐसा समझकर उनकी आज्ञारूप धर्म की आराधना करनी अर्थात् उनकी अप्रत्यक्षरूप से आराधना करने समान है। अतः ऐसे सर्वज्ञ वीतरागी महापुरुष स्वदेह से नहीं तो भी आज्ञारूप धर्मदेह से आज्ञारूप धर्मशास्त्र देह से आज भी हमारे बीच उपलब्ध हैं । इससे परम आनन्द की अनुभूति करनी चाहिए।
सर्वज्ञ तीर्थंकर परमात्मा, और गुरु भगवंत तथा उनके द्वारा बताए गए आज्ञारूप आदेश धर्म में जन्य जनकभाव संबंध से कार्य-कारणभाव संबंध से अभेदभाव माना जा सकता है । औपचारिक व्यवहारिक रूप से भेद होते हुए भी .. अभेद भाव का भाव बनाया जा सकता है। ऐसी स्थिति में.. एक भी आज्ञा से साक्षात् परमात्मा की उपासना की जा सकती है। अतः आज्ञा के रूप में देव-गुरु का साक्षात्कार और देवगुरु की उपस्थिति में आज्ञारूप धर्म का साक्षात्कार अभेदभाव की दृष्टि से किया जा सकता है। इस तरह उभय रूप से दोनों की उपयोगिता सिद्ध होती है।
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आध्यात्मिक विकास यात्रा