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प्रकार की मिथ्या गलत भ्रमणाओं मान्यताओं में नहीं रहना चाहिए । स्वयं तथाप्रकार के पापादि करके ईश्वर पर आरोपित कर देना यह गलत मिथ्यावृत्ति है । इसे मिथ्यात्व कहते हैं । अतः ऐसे पापों को करनेवाला मैं स्वयं हूँ, इन पापों की प्रवृत्ति करके कर्म बांधनेवाला भी मैं ही हूँ । बांधे हुए कर्मों के फल भी मैं ही भुगतनेवाला हूँ। किये हुए कर्मों के कारण वैसी सद्गति या दुर्गति में जानेवाला भी मैं स्वयं ही हूँ। कोई ईश्वरादि मुझे एक गति से अन्य गति में ले जानेवाला या भेजनेवाला नहीं है । और न ही सुख-दुःख का फल देनेवाला भी कोई ईश्वर है। सुख-दुःख ईश्वरदत्त नहीं है । ये मैंने ही किये है अतः मैं ही इसकी अशुभ सजा भुगतता हूँ । भूतकाल में भुगत कर आया हूँ, और भविष्य में भी भुगतता ही रहूँगा । अतः यहाँ ईश्वरादि को बीच में लाना सर्वथा गलत है। मिथ्या-असत्य है अतः मिथ्यात्व कहते हैं । इस मिथ्यात्वग्रस्त विचारधारा को पकडकर मिथ्यात्वी बनने की अपेक्षा सत्य-सच्चाई समझकर सम्यक्त्वी बनना ही ज्यादा श्रेयस्कर है। श्रेष्ठ-श्रेयस्कारी मार्ग कौन सा?
निषेधात्मक और विधेयात्मक ऐसे दो प्रकार के मार्ग हैं । निषेधात्मक मार्ग में जो जो नहीं करना है उसकी गणना की जाती है । उदा. के लिए हिंसा-झूठ-चोरी आदि कोई पाप नहीं करना है। जिस-जिस कार्य को नहीं करना चाहिए उनकी गणना निषेधात्मक मार्ग में की जाती है । इस दृष्टि से पाप हेय-त्याज्य निषेधात्मक है । दूसरी तरफ जो जो करना चाहिए, अवश्य करने योग्य होता है । उस आचरणीय मार्ग को विधेयात्मक मार्ग कहते हैं । उदा. के लिए सत्य बोलना चाहिए। क्षमा नम्रतादि गुणों के भावों में व्यस्त रहना चाहिए । पूजा-पाठ-ध्यान-स्वाध्याय-तपादि करना विधेयात्मक मार्ग है। - क्या-क्या करना चाहिए? और क्या-क्या नहीं करना चाहिए? यह परमात्मा एवं गुरुओं की आज्ञा के आधार पर आधारित है, निश्चित है। अतः विधेयात्मक एवं निषेधात्मक दोनों धर्म आज्ञाप्रधान ही है। ऐसा-ऐसा नहीं करना चाहिए-ऐसी निषेधात्मक आज्ञा भी देव-गुरु की ही है । और इसी तरह यह ऐसा करना चाहिए ऐसी विधेयात्मक आज्ञा भी देव गुरूओं की ही है। अतः उनकी दोनों प्रकार की आज्ञा के अनुसरण में ही धर्म है।
उपरोक्त दोनों प्रकार के धर्मों में प्रथम किस मार्ग का आचरण करना चाहिए? आए सोच सकते हैं। क्या क्या करना चहिए...आप कब करोगे, जब करोगे तब हो सकता है उसमें दीर्घ काल व्यतीत हो जाएगा। अतः सबसे पहले जो जो निषेधात्मक है, जो नहीं .
देश विरतिघर श्रावक जीवन
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