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________________ . मृषावाद प्राणातिपात 'शल्य अदत्तादान - मिथ्यात्व -मैथुन Tallt परिग्रह 8 निकले वहाँ तक कैसी स्थिति करता है । वैसे ही विपरीतवृत्ति मन के काँटे की तरह शल्य बनकर रह जाती है । इसे १८ वाँ पापस्थान कहा है। मुख्य रूपसे उपरोक्त १८ पापस्थानों की जातियाँ दर्शायी गई है। इनमें से एक-एक पाप का सेवन जीव सेंकडों तरीकों से करते हैं। मन की प्राधान्यता से किये जाते पाप, र अट्ठारह क्रोध वचन-भाषा द्वारा बोले जाते पाप, और पापस्थानक-मान काया-शरीर द्वारा किये जाते पाप । माश इस तरह तीनों योगों से पाप की प्रवृत्ति '. होती है । १८ प्रकार से पाप करके... जीव आठों प्रकार के कर्म बांधते हैं, और बांधे हुए पाप-कर्म कालान्तर में जन्मां र भवान्तर में कभी भी उदय में आते हैं और अपना फल देते हैं। किये पाप कर्म के उदय से दुःखरूप फल मिलता है । जो बडा ही दुःखदायी होता है । ऐसे भारी दुःखों को भुगतने के लिए जीवों को दुःख की दुर्गति में जाना पडता है । वहाँ जन्म लेना पडता है। तिर्यंच और नरक की दो दुर्गतियाँ है । तिर्यंच गति में जाकर जीव पशु-पक्षी बनता है। और नरक की गति में जाकर जीव नारकी बनता है । वहाँ अपने किए हुए पाप कर्मों की सजा भुगतता है। सजा बडी ही भयंकर कक्षा की दुःखदायी होती है। आखिर पाप कर्म भी वैसे भयंकर कक्षा के किये हैं। किए हुए शुभ पुण्यकर्मों का फल कालान्तर जन्मान्तर में सुखरूप मिलता है । पुण्य शुभ फलदाई होते हैं । अतः ऐसे ऊँचे अच्छे सुख को भुगतने के लिए.. जीव को ऊँची सद्गति में जाना होता है ।जीव मनुष्य और देवगती में जाकर ही अच्छे ऊँचे सुख को भोग सकता है । ये दो सद्गतियाँ है । एक बात बिल्कुल सही अर्थ में सत्य रूप में ध्यान में रखिए कि...जीव जिस किसी प्रकार की पुण्य या पाप की शुभ अच्छी या अशुभ-खराब पाप की प्रवृत्ति करेगा, उस करणी के आधार पर जीव की अच्छी-बुरी गती होगी। वहाँ वह सुखी-या दुःखी होगा। यह एक मात्र अपनी करणी के आधार पर होगा । यहाँ ईश्वर या अन्य कोई आप के जीव को गति में ले जाएगा या, भेजेगा, या वहाँ पर मारेगा-पीटेगा या हिंसा-वधादि करेगा या ईश्वर पुण्य-पाप के फल को देगा या माफ करेगा इत्यादि ५९२. आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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