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________________ शब्द-ध्वनि सुनना प्रारंभ करता है । सचित्त-अचित्त और मिश्र इन तीन प्रकार की ध्वनि सुनता है। स्पर्शेन्द्रिय - रसनेन्द्रिय 411 121 RE घ्राणेन्द्रिय चक्षु इन्द्रिय श्रवणेन्द्रिय Hear" RAILERAKHNA " : ur mammi नाक ____ इन्द्रिय नाम - अंग नाम विषय ज्ञान . | संख्या १) स्पर्शेन्द्रिय चमडी स्पर्श ज्ञान | . ८ २) रसनेन्द्रिय जीभ रस-स्वाद ज्ञान ३) घाणेन्द्रिय गंध ग्रहण ज्ञान ४) चक्षुइन्द्रिय आँख वर्ण-रंग ज्ञान ५) श्रवणेन्द्रिय कान | ध्वनि ज्ञान ... ३ । | २३ विषय स्पर्शेन्द्रियादि पाँच स्थूल इन्द्रियाँ हैं। मन इन्द्रिय नहीं लेकिन अतीन्द्रिय है। चक्षुइन्द्रिय का अंग आँख है, वैसे मन कोई स्वतंत्र इन्द्रिय नहीं है जिसका कोई अंग हो। मन स्वयं ही स्वतंत्र है । अत्यंत सूक्ष्म है। चेतनात्मा ने अपने ज्ञान के उपयोग हेतु सोचने-विचारने के लिए मन बनाया है । यह मनोवर्गणा के जड-पुद्गल-परमाणुओं को संचित करके बनाया गया है । अतः मन को जड कहा गया है । सूक्ष्म द्रव्य के रूप में आत्मा के साथ रहता है । उसका शरीर पर कोई स्वतंत्र अंग विशेष नहीं है। हम प्रतिक्षण जो भी सोच-विचार रहे हैं यह मन से ही है । मन का ही कार्य है। इन्द्रियों की प्राप्ति में क्रमिक विकास की पद्धति है । एक के बाद एक इस तरह क्रम से प्राप्त होती है । इन्द्रियों का भी अपना विकास क्रम है । तथाप्रकार के उपार्जित नामकर्म की प्रकृति है। इन्द्रियनामकर्म की प्रकृति के शुभ-अशुभ उदय के कारण हीन-पूर्णादि-इन्द्रियाँ जीव प्राप्त करता है । उस प्राप्ति की प्रक्रिया पर्याप्ति नामकर्म के आधार पर होती है। देश विरतिघर श्रावक जीवन
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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