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, सम्मदिठ्ठि जीवो जइविहे पावं समायरेइ किंचि। ____ अप्पोसि होइ बंधो, जेणं न निद्धंधसं कुणइ॥ . ... सम्यग् दृष्टि जीव यद्यपि पाप कर्म करता है, परन्तु उसे भारी लम्बे दीर्घकाल की अवधि का कर्म नहीं बंधता है। कर्म की स्थिति अल्प इसलिएबंधती है कि उसके परिणामों में क्रूरता-कठोरता निर्ध्वंसता नहीं होती है। निर्वस परिणामों का न होना यह सम्यम् दर्शन की उपस्थिति का फल है । उदाहरण अपने घर का लीजिए.. घर की संस्कार सम्पन्न धर्मप्रिय श्राविका जब घर का काम करेगी, रसोई करेगी, फल-सब्जी सुधारना-बनाना, घर की साफसुफी करना आदि में किसी भी जीव-जन्तु की हिंसा न हो जाय उसका सतत लक्ष रखती है। परन्तु उसी जगह यदि घर का एक नोकर यह काम करता है तो उसके वैसे भाव नहीं रहते हैं। दिल में दया, एवं जीवों को बचाने के, रक्षा के भाव ही नहीं रहते हैं मिथ्यात्व के कारण । अतः नोकर के निर्ध्वंस परिणामों की करता आदि के आधार पर उसे उस काम की प्रवृत्ति के कारण ९०% कर्म का बंध होगा। जबकि श्राविका को मात्र १०% कर्म का अल्प बंध होगा, क्योंकि निर्ध्वंस परिणाम नहीं है । दिलमें क्रूरता-कठोरता नहीं
इसीलिए प्रत्येक जीवों को लक्ष रखना चाहिए कि परिणाम टूट न जाय, गिर न जाय, निक्स या क्रूर कठोर न हो जाय । अतः धर्मिष्ठ परिवारों के सजग श्रावक-श्राविकाएँ घरमें हो सके वहाँ तक नोकर को नहीं रखें । और घर का सारा काम स्वयं अपने हाथों से करने के संस्कार बनाएँ ताकि कई प्रकार की विराधनाओं से बचा जा सकता है। ज्यादा जीवहिंसा से बचा जा सकता है।
निरर्थक श्रीमंताई का प्रदर्शन करने के मिथ्याभिमान में ज्यादा नोंकरों की संख्या दिखाकर उन्हीं से काम लेने का रखें और घर की श्राविका को कुछ भी काम न करते हुए मात्र शेठानी बनकर हुकम ही करने का रहेगा तो परिणाम स्वरूप शरीर की चरबी बढती ही जाएगी। और शरीर रोगों का घर बन जाएगा। अतः दोनों तरफ से फायदा है । एक तरफ से तो जीव हिंसा-विराधना से बचाव होगा। ज्यादा कर्म बंध नहीं होगा। और काम की सफाई भी अच्छी रहेगी। तथा शारीरिक श्रम से शरीर भी स्वस्थ रहेगा। फूलेगा–बढेगा नहीं। यदि आप ये कहें कि नोकर को वैसा सिखा देंगे। आपकी भावना अच्छी है। परन्तु नोकर की वृत्ति में मिथ्यात्व के गाढ संस्कार पडे हुए होने के कारण छोटे-छोटे जीवजन्तुओंको जीव मानने के लिए उसका मन तैयार ही नहीं है । मिथ्यात्व के कारण उसकी विपरीत वृत्ति होती है । अतः वह श्रद्धा रखेगा ही नहीं, मानेगा ही नहीं।
देश विरतिघर श्रावक जीवन
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