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________________ अध्याय १० का प्रवेश द्वार देशविरतिधर श्रावक जीवन ५८० मोहनीय कर्मजन्य घातक दोष........................५७७ विकास क्षेत्रीय सोपान.............. .............. .५७८ तीन योगों के बीच आत्मा........................... ६ पर्याप्तियां.........................................५८४ इन्द्रिय, पर्याप्ति और प्राणों का कोष्ठक.................५८७ १८ पापस्थानकों का सामान्य स्वरुप..................५८८ श्रेष्ठ-श्रेयस्कारी मार्ग कौन सा ?......................५९३ . धर्म क्या और कैसा है ? ........५९५ कर्मक्षयकारिका आज्ञा - पाप निवर्तिका आज्ञा........५९८ .. देव, गुरु या धर्म, किससे उद्धार.......................५९९ विरतिप्रधान धर्म.....................................६०१ भगवान की विरतिप्रधान देशना......... ......६०३ सम्यग् श्रद्धा का परिणमन............................६०६ जैन दर्शन में मुक्ति....................................६०८ स्वर्ग देनेवाला पुण्य और मोक्षदाता - निर्जरा..........६१० श्रमण धर्म का अनुगामी श्रावक धर्म..................६११ . जैन किसे कहें ?....................................६१३ ४ थे और ५ वे गुणस्थान में अन्तर.....................६१५ श्रावकजीवन योग्य व्रतादि का स्वरुप............... ६१७ सम्यक्त्वी की प्रार्थना.............................. पाँच अणुव्रतों का स्वरुप............................. .६२५ तीन गुणव्रतों का स्वरुप........................... .६४५ चार शिक्षाव्रतों का स्वरुप....................... ६६७ बारह व्रत के १२४ अतिचार........ .......६७६ श्रावक के २१ गुण......... ..........६७७ श्रावक जीवन की दिनचर्या. ..:...६८२ मन्हजिणाणं सज्झाय में श्रावक के ३६ कर्तव्य.........६८६ भावश्रावक के १७ लक्षण.. ......६८८ ..६८९THANI ण......... PAK पाँचवे गुणस्थानवर्ती श्राव
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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