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________________ किया। साथ ही देश विरति रूप श्रावक धर्म योग्य बारह व्रत स्वीकार करके वे परमात् जैन श्रावक बने । उनकी सम्यग् श्रद्धा अनुपम एवं विशुद्ध कक्षा की थी । उन्हों ने भी स्व-आत्मा का कल्याण साधा एवं अल्प भवों में ही मोक्ष सिधारेंगे । I शास्त्रों में ऐसे सैंकड़ों दृष्टान्त एवं चरित्र ग्रन्थों में ऐसे अनेक महापुरुषों के चरित्र लिखे गये हैं, जिन्होंने सम्यग् दर्शन रूपी रत्न को पाकर ही मोक्ष प्राप्त किया हैं । तथा अनागत (भविष्य) काल में भी जावेंगे। ऐसे सम्यग्दर्शन से मोक्ष की प्राप्ति हो, इसलिए परमात्मा पार्श्व प्रभु के चरण कमल में अन्तिम प्रार्थना इस प्रकार की गई है— तुह सम्मत्ते लद्धे चिन्तामणि कप्पपाय वब्भहिए । पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं ॥ ४ ॥ -- " श्री उवसग्गहरं स्तोत्र" में चौदह (चतुर्दश) पूर्वधारी प. पूज्य भद्रबाहुस्वामी लिखते हैं कि हे प्रभु ! चिन्तामणि रत्न और कल्पवृक्ष से भी अधिक (महिमाशाली लाभदायक) ऐसा आपका सम्यग् दर्शन- सम्यक्त्व रूपी रत्न पाकर अनेक निर्विघ्न- विघ्नरहित, जन्म मरण रहित अजरामर ऐसे मोक्ष पद को यथाशीघ्र ही प्राप्त करते हैं । यही प्रार्थना मैं मेरे लिए करता हूँ कि मैं भी ऐसा आपका विशुद्ध सम्यग् दर्शन प्राप्त करके मोक्ष पद को प्राप्त करूँ । इसी तरह अनेक भव्यात्माएँ भी आपकी परम श्रद्धा रूप सम्यग् दर्शन- सम्यक्त्व रत्न को प्राप्त करके भविष्य में मोक्ष पद को प्राप्त करें । ऐसे सभी जीवों के प्रति शुभ मनोकामना एवं प्रार्थना प्रभु चरण में शुद्ध भाव से प्रकट करता हूँ । सभी विशुद्धं श्रद्धालु बनें। सभी का कल्याण हो। इसी शुभेच्छा के साथ....... समाप्तम् । ॥ " सर्वेऽपि सन्तु श्रद्धावन्तः” ॥ ॥ इति शं भवतु सर्वेषाम् ॥ ✰✰✰ सम्यक्त्व प्राप्ति का अद्भुत आनन्द ५७३
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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