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धर्म का आचरण कभी भी नहीं किया। योगानुयोग बत्तीस पुत्रों की प्राप्ति होने पर एवं भवितव्यतावश बत्तीस ही पुत्रों की चेड़ा राजा के साथ युद्ध में मृत्यु भी हो गई, तथापि उन्हें रंज मात्र भी शोक नहीं हुआ। अंबड परिव्राजक की परीक्षा में भी पार उतरकर सुलषा श्राविका ने अपने सम्यग्दर्शन की सही अर्थ में रक्षा की, एवं आंगामी चौबीसी में तीर्थंकर बनने का सौभाग्य प्राप्त किया।
, मालवदेश की उज्जयिनी (उज्जैन) नगरी के प्रजापाल राजा की दो पुत्रियां थीं। मिथ्याशास्त्र पढ़ी हुई सुर सुन्दरी, मिथ्यामति थी जबकि कर्म-धर्म का सम्यग् सिद्धान्त पढ़ी ..हुई मयणा सुन्दरी शुद्ध सम्यग् दृष्टि श्राविका थी, जिसने अपने पति श्रीपाल राजा को भी शुद्ध सम्यग् दृष्टि श्रावक बनाया था। मयणा श्रीपाल के जीवन में आए हुए सैकड़ों कष्टों एवं दुःखों के द्वारा उनकी सम्यग् दृष्टि-श्रद्धा की परीक्षा हुई। फिर भी श्रीपाल-मयणा दम्पत्ति श्रद्धा की कसौटी पर पूरे सौ टका खरे उतरे । सिद्धचक्र रूप नवपद की परमभक्ति ' एवं उपासना करके, उन्होंने अपना कल्याण साध लिया। इस तरह उन्होंने नववें भव में
मोक्ष जाने का अधिकार प्राप्त किया। ऐसे सम्यग् श्रद्धावंत मयणा-श्रीपाल का आदर्श 'आज भी “श्रीपाल रास" के रूप में उपलब्ध है।
. महाराज श्रीकृष्ण ने भगवान नेमिनाथ से सम्यग् धर्म एवं जीवादि तत्त्वों का सम्यग् ज्ञान समझकर सम्यग् दर्शन प्रकट किया। यद्यपि व्रत-विरति-पच्चक्खाण का आचरण उनसे नहीं हो पाया, फिर भी यादवाधिपति श्रीकृष्ण ने सही सम्यग् दर्शन के आधार पर आगामी चौबीसी में तीर्थंकर बनने का सर्वोच्च पुण्य उपार्जन किया। वे १२ वें अममस्वामी नामक तीर्थंकर बनकर मोक्ष में जावेंगे।
.. परम जिनभक्त रावण ने विशुद्ध सम्यग् दर्शन के बल पर पत्नी मन्दोदरी के साथ,
अष्टापद गिरी (महातीर्थ) पर प्रभु भक्ति में तल्लीन बनकर तीर्थंकर नामकर्म उपार्जन किया। महाविदेह क्षेत्र में तीर्थंकर बनकर, वे भी मोक्ष में जावेंगे।
ग्यारहवीं शताब्दी में गुजरात की गद्दी पर आए राजा कुमारपाल ने कलिकाल सर्वज्ञ पू. हेमचन्द्राचार्य महाराज से अरिहंत धर्म प्राप्त करके, परम शुद्ध सम्यक्त्व रत्न प्राप्त
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आध्यात्मिक विकास यात्रा