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है तब उन्हें क्षायिक भाव के ज्ञानादि गुण प्राप्त होते हैं। इससे क्षायोपशम भाव के क्षमादि हो जाते हैं। क्योंकि इनमें क्षय के साथ साथ उपशम भाव का भी मिश्रण था । अब उपशमन की प्रक्रिया सर्वथा न रही और एक मात्र क्षायिक भाव की क्षपक प्रक्रिया ही रही । अतः क्षयोपशम भाव के क्षमादि धर्म का नाश होता है और क्षायिक भाव के क्षमादि धर्म प्रकट होते हैं । अतः इसे धर्म संन्यास नामक सामर्थ्य योग कहते हैं
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२) योगसंन्यास नामक सामर्थ्ययोग - धर्मसंन्यास के सामर्थ्ययोग से आगे बढे हुए क्षपकश्रेणी पर आरूढ क्षपक योगी जब १४ वे गुणस्थानक पर पहुँचकर मन-वचन-काया के योगों का निरोध करते हैं तब वे योगसंन्यास को प्राप्त होते हैं । इसीलिये कहा है कि क्षपक श्रेणी का जहाँ से प्रारंभ होता है ऐसे अपूर्वकरण नामक आठवें गुणस्थानक पर तात्विक धर्मसंन्यास होता है । और आयोज्यकरण के बाद तात्त्विक योगसंन्यास कहलाता है ।
इच्छायोगादि तीन योगों का कोष्ठक
योग का नाम
१ इचछा योग
२
शास्त्र योग
३ सामर्थ्य - योग
प्राधान्यता प्रमुख लक्षण
सच्ची धर्म इच्छा,
शास्त्र श्रवण, श्रुतबोध, सम्यग् दृष्टि,
प्रमादजन्य विकलता
५६४
इच्छाप्रधान
शास्त्र
प्रधान
सामर्थ्य धर्मसन्यास प्रधान
४ सामर्थ्य-योग सामर्थ्य योगसन्यगा प्रधान
शास्त्रपटुता, श्रद्धा, अप्रमाद
शास्त्र से पर विषय स्वसंवेदन,
अनुभवज्ञान, क्षयोपशम धर्मत्याग
पात्र योगी
सच्चा धर्म इचछुक आगमशास्त्रश्रोता,
सम्यग् ज्ञानी, प्रमादी
शास्त्र पटु, श्रद्धालु अप्रमत्त
क्षपक श्रेणि गल योगी और सयोगी.
केवली
मन-वतन - काया के अयोगी केवली योगों का त्याग
अयोग- परमयोग
गुणस्थान
४, ५, ६
उपलक्षण से व्यवहार
से
६, ७
आध्यात्मिक विकास यात्रा
८, ९,१०,
१२, १३.
उपरोक्त किया हुआ तीनों योगों का वर्णन संक्षिप्त रूप से इस कोष्ठक द्वारा आसानी
समझा जा सकता है ।
१.४ शैलेषी
अवस्था में