________________
I
प्रमादपूर्ण होता था, विधिविधान में जाने अन्जाने भी दोषों का सेवन हो जाता था वह सब अब इस कान्ता दृष्टि में दूर हो जाता है । और अनुष्ठान निरतिचार शुद्ध होने लगता है स्त्रीलिंगवाची कान्ता नाम एक पतिव्रता सन्नारी के अर्थ में है । अतः इस दृष्टि का साधक ऐसी सन्नारी के जैसे स्वभाववाला होता है। ऐसा उदाहरण देने का तात्पर्य यह है कि जैसे एक पतिव्रता पवित्र सन्नारी चाहे कोई भी काम करती रहे परन्तु उसका मन स्वपति में ही रमण करता रहता है । उसके सिवाय अन्य - परपुरुष का कभी स्वप्न में विचार मात्र भी नहीं आता है । ठीक उसी तरह कान्ता दृष्टि का साधक कई प्रवृत्तियाँ करते हुए भी अपना मन श्रुतधर्म में ही तल्लीन रखता है। पूर्व की ५ दृष्टियों की अपेक्षा इस छट्ठी दृष्टि का बोध काफी ज्यादा रहता है । ज्यादा गाढ तथा ज्यादा स्थिर रहता है । इसी कारण यहाँ पर भाव अनुष्ठान - शुभ क्रिया होती है । यह अनुष्ठान भी निरतिचार होता है। शुद्ध उपयोग का अनुसरण करनेवाला तथा अप्रमत्त भाववाला अनुष्ठान होता है। तथा यहाँ रहे हुए दूसरों hat भी योग मार्ग में जोडते हैं ।
1
कान्ता दृष्टि का कोष्ठक
दोष- अन्यमुद्र त्याग
गुण-मीमांसा प्राप्ति
बोध प्रकाश - ताराप्रभा समान
योगांग धारणा
गुणस्थान
४ से ७
७. प्रभादृष्टि
प्रभायां पुनरर्कभासमानो बोधः, स ध्यानहेतुरेव सर्वदा, नेह प्राचो विकल्पावसर; प्रशमसारं सुखमिह । अकिंचित्कराण्यत्रान्यशास्त्राणि समाधिनिष्ठमनुष्ठानं, तत्सन्निधौ वैरादिनाशः, परानुग्रहकर्तृता, औचित्ययोगो विनयेषु तथाऽवन्ध्या सत्क्रियेति ॥
सम्यक्त्व प्राप्ति का अद्भुत आनन्द
I
प्रभा नाम की इस ७ वीं दृष्टि में सूर्य के प्रकाश जैसा बोधप्रकाश होता है । अब एक दृष्टि आगे बढ़ते ही तारा के टिमटिमाते प्रकाश से बढ़कर सीधा सूर्य के प्रकाश जैसा हो गया । सूर्य का प्रकाश इतना तेजस्वी... होता है कि जिसमें कोई भी पदार्थ छिप ही नहीं सकता है। सभी पदार्थ स्पष्ट होते हैं । अतः प्रभा दृष्टिवाले जीव का ज्ञान - ध्यान सूर्य प्रकाशवत् व्यापक बनता है। यहाँ आत्मा सूर्यसमान है और ज्ञान प्रकाशसमान है । यह प्रभा दृष्टि सदा ध्यान का कारण बनती है । यहाँ प्रायः विकल्पों को अवसर ही नहीं रहता है । यहाँ ऐसी उच्च कोटि की बोध-रमणता, ज्ञान - रमणता होती है कि.. बार-बार इसमें
1
५५१