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ज्ञान - दर्शन - चारित्रमय आत्मा का जो शुद्ध परिणाम अर्थात् दर्शन, ज्ञान, चारित्र तीनों की एकता रूप जो आत्म परिणाम विशेष होता है उसे ही निश्चयं नय की दृष्टि से सम्यक्त्व कहते हैं । आत्मा और आत्मा के ज्ञान- दर्शनादि गुण भिन्न-भिन्न नहीं हैं परन्तु अभेद भाव से एक ही है । अभेद परिणाम से परिणत आत्मा तद्गुण रूप कहलाती हैं । जैसा जाना वैसा ही त्याग भाव हो और श्रद्धा भी तदनुरूप हो ऐसे उपयोगी की आत्मा वही ज्ञान, वही दर्शन, वही चारित्र रूप है। ऐसी रत्नत्रयात्मक आत्मा, अभेद भाव से देह में ही हुई है । रत्नत्रयी के शुद्ध उपयोग में वर्तती हुई आत्मा का ही निश्चय सम्यक्त्व कहलाता है । ऐसा निश्चय सम्यक्त्व सातवें अप्रमत्त गुणस्थानक के पूर्व कहीं नहीं होता
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व्यवहार सम्यक्त्व
उपरोक्त निश्चय सम्यक्त्व में हेतुभूत सम्यक्त्व के ६७ भेदों का ज्ञान, श्रद्धा व क्रिया रूप से यथाशक्ति पालन करने को व्यवहार सम्यक्त्व कहते हैं। मुनिदर्शन, जिनभक्ति महोत्सव, जिन दर्शन पूजन, तीर्थयात्रा, रथयात्रा आदि शुद्ध हेतुओं से उत्पन्न होते श्रद्धारूप सम्यक्त्व को व्यवहार सम्यक्त्व कहते हैं। ये हेतु सहायक निमित्त हैं ।
१. द्रव्य सम्यक्त्व - जिनेश्वर कथित तत्त्वों में जीव की सामान्य रुचि को द्रव्य सम्यक्त्व कहते हैं, अर्थात् सर्वज्ञोपदिष्ट जीवादि तत्त्वों में परमार्थ जाने बिना ही वे ही सत्य है " ऐसी श्रद्धा" रखनेवाले जीवों के सम्यक्त्व को द्रव्य सम्यक्त्व कहते हैं ।
२. भाव सम्यक्त्व - उपरोक्त सामान्य श्रद्धा रूप जो द्रव्य सम्यक्त्व है उसी में विशेष बुद्धि से जानना अर्थात् सर्वज्ञोपदिष्ट जीव- अजीव, मोक्षादि तत्त्वों को जानने के उपाय रूप, नय, निक्षेप, स्याद्वाद, प्रमाण आदि शैली पूर्वक सभी तत्त्वभूत पदार्थों को विशेष ज्ञान से परमार्थ जाननेवाले की श्रद्धारूप सम्यक्त्व को भाव सम्यक्त्व कहते हैं । संक्षेप में सामान्य रुचि यह द्रव्य सम्यक्त्व है। यहाँ पर द्रव्य कारण है और भाव कार्य है। इसलिये भाव सम्यक्त्व के कारण रूप द्रव्य सम्यक्त्व कहा गया है और इसका विशेष रूप से विस्तार रुचि भाव सम्यक्त्व है ।
पौगलिक सम्यक्त्व - मिथ्यात्व मोहनीय कर्म के पुद्गल परमाणु के उपशम या क्षयोपशम से उत्पन्न होने वाले सम्यक्त्व को पौद्गलिक सम्यक्त्व कहा गया है। इसमें इन पुद्गलों का उपशम क्षयोपशम प्रधान रूप से होता है। ऐसे क्षायोपशमिक, वेदक, सास्वादन, मिश्र प्रकार के सम्यक्त्व पौगलिक सम्यक्त्व में गिने जाते हैं, जबकि क्षायिक और
सम्यक्त्व प्राप्ति का अद्भुत आनन्द
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