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औपशमिक सम्यक्त्व
निसर्ग रुचि
पांच प्रकार के सम्यक्त्व
क्षायोपशमिक
सम्यक्त्व
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क्षायिक
सम्यक्त्व
दस प्रकार के सम्यक्त्व
उपदेशरुचि
आज्ञा रुचि
सास्वादन
सम्यक्त्व
सूत्ररुचि
अधिगम रुचि
विस्तार रुचि क्रिया रुचि
संक्षेप रुचि
धर्म रुचि
इस तरह भिन्न-भिन्न तरीकों से सम्यक्त्व का स्वरूप समझने के लिए संख्या निमित्तक भेद बताए हैं । इनका स्वरूप संक्षिप्त रूप से समझने के लिए कुछ विचार करना यहाँ आवश्यक है ।
वेदक
सम्यक्त्व
१. एक प्रकार से – जिनोक्ततत्त्वेषु रुचिः शुद्धसम्यक्त्वमुच्यते ।
सर्वज्ञ वीतरागी जिनेश्वर भगवंतों ने बताए हुए जीव- अजीवादि तत्त्वों में अज्ञानशंका, भ्रमशंका, एवं मिथ्याज्ञानादि रहित निर्मलरुचि अर्थात् श्रद्धा रूप आत्म परिणाम विशेष को सम्यक्त्व कहते हैं। जिन कथित तत्त्वों में यथार्थपने की बुद्धि या वास्तविक श्रद्धारूप भाव या तथापि शुद्ध तत्त्वों की श्रद्धा (तत्त्वार्थश्रद्धानं) को बिना किसी भेद के एक प्रकार का शुद्ध सम्यक्त्व कहते हैं ।
आध्यात्मिक विकास यात्रा
बीज रुचि
२. निसर्ग और अधिगम इन दो तरीकों से जो सम्यक्त्व उपार्जन किया जाता है, उसे इन दो प्रकार में गिना गया है
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निश्चय सम्यक्त्व
निच्छयओ सम्मत्तं, नाणाइमयप्प शुद्ध परिणामो । इयरं पुण तुह समये, भणियं सम्मतं हे उहिं ॥