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________________ वीरालयम् जैन तीर्थ - कात्रज - पुना । आर्यावर्त - भारत देश के महाराष्ट्र राज्य की पुण्य भूमि संस्कार नगरी - विद्या का धाम, लघु काशी के रुप में प्रसिद्ध पुण्यपत्तन - पुना शहर है। पुना की दक्षिण दिशा में कात्रज घाट की विशाल पर्वतमाला दक्षिण भारत के प्रवेश द्वार के रुप में प्रसिद्ध है। घाट प्रदेश की पर्वतमाला की पहाडी भूमि पर वीरालयम् जैन तीर्थ निर्माण हो रहा है। निसर्गरम्य प्राकृतिक सौंदर्य से सुशोभित पहाडी भूमि जहां शुद्ध हवा-पानी शान्त वातावरण है। खुशनुमा हवाखाने के गिरि मथक MINI HILL STATION स्वरुप वीरालयम् यह सेवा-शिक्षा- और साधना के त्रिवेणी संगम स्वरुप अन्तराष्ट्रीय जैन केन्द्र है। है। - वास्तु शास्त्र, शिल्पशास्त्र तथा निसर्ग के नियमों का पालन सुव्यवस्थित करते हुए सुंदर तीर्थ आकार ले रहा है। श्री वर्धमान समवसरण ध्यानालयम् महाप्रासाद :- समवसरण यह तीर्थंकर परमात्मा को केवलज्ञान की प्राप्ति के प्रसंग पर केवलज्ञान कल्याणक मनाते समय देवताओं द्वारा निर्मित धर्मसभा के दृश्य समान है। सर्वज्ञ बने हुए भगवान समस्त जीवों को देशना देंगे। ऐसे समय पर देवलोक के देवी-देवता, . मनुष्य गति के नर-नारी तथा तिर्यंच गति के पशु-पक्षी आदि तीन गति के जीव देशना श्रवण करने के लिए आते हैं। ये सब सेंकडों की संख्या में आते हैं। वे सब कहां कैसे बैठेंगे? भगवान स्वयं कहां किस तरह बिराजमान होंगे? इत्यादि सब बातों का पूरा ध्यान रखकर देवता ३ खंड का विशाल धर्मसभा भवन बनाते हैं, उसे समवसरण कहते हैं। समस्त विश्व में एक मात्र तीर्थंकर भगवान के लिए ही ऐसा भव्य विशाल समवसरण बनता है। तीर्थंकर के सिवाय जगत में अन्य किसीके लिए भी नहीं बनता है। यह सबसे विशेषता है। चौथे आरे में समवसरण बनते थे। तीर्थंकरों की अनुपस्थिति में पांचवे आरे में न तो भगवान होते हैं और न ही समवसरण बनते हैं। केवलज्ञान के कल्याणक की उजवणी के प्रबल निमित्त रुप ऐसे समवसरण का इतिहास हजारों वर्षों पश्चात आज भी सबकी स्मृति में ताजा बना रहे इस उत्तम भावना से समवसरण को ही मंदिर महाप्रासाद का रुप देकर प.पू. पं.श्री अरुणविजयजी म.सा. ने वीरालयम् जैन तीर्थ में श्री वर्धमान समवसरण ध्यानालयम् महाप्रासाद निर्माण करने की अनोखी योजना बनाई है। जिसे वीरालयम् ट्रस्ट की तरफ से निर्माण किया जा रहा है। जो समुद्र तल से करीब ७०० फीट की ऊंचाई पर बन रहा है। भूमि की पवित्रता तीर्थ निर्माण के लिए काफी योग्य है। पहाडी की चोटी पर करीब २००x२०० फूट के विशाल व्यास में बन रहा है। तदनुसार सुमेरपुर के शिल्पशास्त्रज्ञ सा. गंगाधरजी किस्तुरजी सोमपुरा को समझाकर
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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