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वीरालयम् जैन तीर्थ में - विश्व का सर्व प्रथम श्री वीशस्थानक यन्त्रमय महाप्रासाद
आगे चौवीशी हुई अनन्ती, वली रे होशे वार अनन्ती । .. अरिहन्त तणी कोई आदि न जाणे, इम भाखे भगवंत रे ॥
चौबीशी का मतलब है 24 तीर्थंकर भगवान । भरत और ऐरावत जैसे 5+5=10 क्षेत्रों में सदा चौबीशीयां अर्थात् 24-24 तीर्थंकर भगवान प्रत्येक उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल में होते ही रहते है। व्यतीत भूतकाल में अनन्त चौबीशीयां बीत चुकी है । वर्तमान चौबीशी दसों क्षेत्रों में है, तथा आगामी भविषष्य काल में भी अनन्त चौबीशीयां होती ही रहेगी। इस तरह अरिहन्त भगवान शाश्वत रुप से होते ही रहते हैं। इसलिए तीर्थंकर बनने के लिए कारणीभूत तीर्थंकर नामकर्म बंधाने में सहयोगी वीशस्थानक तप भी शाश्वत संबंध है। आखिर तीर्थंकर अरिहंत भगवान बनने का मुख्य आधार वीशस्थानक पर है । वीशस्थानक के 20 पद :1) अरिहंत पद 2) सिद्ध पद 3) प्रवचन पद 4) आचार्य पद 5) स्थवीर पद
6) उपाध्याय पद 7) साधु पद 8) ज्ञान पद 9) दर्शन पद 10) विनय पद 11) चारित्र पद 12) ब्रह्मचर्य पद 13) किया पद 14) तप पद 15) गणधर पद 16) जिन पद 17) संयम पद 18) अभिनव पद 19) श्रुत पद 20) तीर्थ पद ।।
इन बीसों के समूहात्मक संज्ञा के रुप में वीशस्थानक संज्ञा दी गई है। ये बीसों पद जैन धर्म-जैन शासन के मुख्य, मूलभूत अंग है । जैन धर्म वीशपदात्मक है, और वीशस्थानक जैन धर्मात्मक है। समस्त प्रकार के तपों में वीशस्थानक तप भी शाश्वत तप है । इन बीसों या कम, या अन्त में एक पद की आराधना करके भी तीर्थंकर नामकर्म उपार्जित किया जा सकता है। .
इन बीसों पदों की आराधना हेतु समस्त विश्व में इस अवनितल पर सर्व प्रथम कक्षा का 20 शिखरबद्ध 20 पदों की 20 देरियोंवाला वीशस्थानक यन्त्रमय महाप्रासाद - वीरालयम् की विशाल भूमि पर निर्माण हो रहा है ।
जैन श्रमण संघ के डबल M.A. Ph.D. हुए सुप्रसिद्ध विद्वान प.पू.पंन्यास प्रवर डॉ. श्री अरुणविजयजी गणिवर्य महाराज की अतःस्फुरणा, दिव्य दैवी संकेत एवं दिव्य शक्ति अनुसार शिल्प शास्त्रीय प्रासाद नियमानुसार अद्भूत अनोखा बेनमून नमूना साकार हो रहा है। __भारत देश की आर्थिक राजधानी बम्बई से N.A. 4 पर जुडा हुआ विद्या का धाम सांस्कृतिक शहर पुना है। पुना शहर के दक्षिण में दक्षिण भारत के प्रवेशद्वार . रुप कात्रज घाट की निसर्गरम्य पर्वतमाला में प्राकृतिक सौंदर्य से सुशोभित सर्वथा