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प्रकाशकीय निवेदन
भौतिक विश्व में मानव जहां भौतिक साधन-सामग्रियों की विपुलता में ही सुख-शान्ति मान बैठा है वहां अध्यात्म के रुक्ष विषय को सर्वथा उपेक्षित होना कोई बडे आश्चर्य की बात नहीं है। लेकिन सर्वथा जब ये भौतिक साधन सुख के बजाय दुःख के निमित्त बन जाते है तब इन्सान की आंखे खुलती है, लेकिन तब तक काफी विलंब हो जाता है। क्योंकि कीमति मानव जीवन का काफी अमूल्य आयुष्य बीत जाता है। फिर भी काफी हद तक वास्तविकता के बीच की भेदरेखा समझ में आते ही आंखे खुलती है। दोनों के बीच में कितना अन्तर है यह तब अच्छी तरह समझ में आता है।
भौंतिकता में जीनेवाला आध्यात्मिकता का सर्वथा विस्मरण कर बैठता है। और आध्यात्मिकता में जीनेवाले के लिए भौतिकता सर्वथा निरुपयोगी लगती है। यह भी एक वास्तविकता है। आखिर आध्यात्मिक जगत क्या है ? इसके अन्दर सुख-शान्ति कैसे सन्निहित है? सच में यही सही है, उपयोगी ही नही अपितु उपकारी भी काफी है। यह सब तब ही अनुभव में आता है जब व्यक्ति स्वयं इसका आस्वाद लेता है। अध्यात्म के मार्ग पर हमारा विकास कितना हुआ? हम कुछ आगे बढे या नहीं? यदि आगे नहीं बढे हैं तो हम कहां रुके हुए हैं ?
और यदि आगे बढे हैं तो कहां तक पहुंच पाए हैं? जहां रुके हैं? या जहां पहुंचे है वहां की स्थिति क्या है? और कैसी है? इत्यादि सारी जानकारी साधक को हो इस हेतु से प्रस्तुत ग्रन्थ एक आयना (दर्पण) के समान है।
आध्यात्मिक विकास के १४ सोपान है। संसार में अनन्त जीव है। इन सबका स्थान किस सोपान पर है? कौन कहां हैं ? कौन कहां तक आगे बढा है ? इत्यादि समस्त निरुपण प्रस्तुत ग्रन्थ में है।
जैन श्रमण संघ के डबल हुए सुप्रसिद्ध विद्वान प.पू.पंन्यास प्रवर डॉ. श्री अरुणविजयजी गणिवर्य म.सा.ने आध्यात्मिक विकास यात्रा नामक प्रस्तुत पुस्तक करीब १५०० पृष्ठों में लिखकर एक नया कीर्तिमान निर्माण किया है। जिसे प्रस्तुत पुस्तकाकार के रुप में प्रसिद्ध किया जा रहा है। श्री अक्की पेट जैन संघ - बेंगलोर की तरफ से प्रथम भाग इ.स.१९९६ में मुद्रण करके प्रकाशित किया था। तत्पश्चात मुद्रक की तरफ से कीफी विलंब हुआ। आखिर हमारे हाथमें बड़ी मेहनत के पश्चात आया । कालिक भवितव्यता ही इसमें कारणीभूत होगी ऐसा मानकर मन मना लेते हैं । पू. मुनि हेमन्तविजय म.सा. के अथाक परिश्रम से अब हम दूसरा और तीसरा भाग प्रकाशित करते हुए तीनों भाग का पूर्ण सेट वाचक वर्ग के कर कमलों में अर्पित करते हुए धन्यता अनुभवते हैं। आशा है जिज्ञासु वाचक-पाठक इसमें से बोध प्राप्त करके अपना आध्यत्मिक विकास साधेंगे।
___- शुभं भवतु सर्वेषाम् - अषाढी गुरु पूर्णिमा
. श्री महावीर रिसर्च फाउन्डेशन वीरालयम् - पुना ३० जुलाइ २००७ - पुना
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