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________________ उदय होने पर मलिन परिणाम वाला हो जाय, और ६ आवलिका पूर्ण होने पर अवश्य ही मिथ्यात्व का उदय हो जाता है। (९) अन्तरकरण के समय में ही भावी मिथ्यात्व के तीन पुज करता है उसमें से (अर्धशुद्ध किया हुआ) मिश्र पुंज । (१०) सम्पूर्ण शुद्ध किया हुआ समकित पुज । (११) अशुद्ध रहा हुआ मिथ्यात्ब पुज । इस तरह चित्र में दिए हुए नम्बर के साथ यहां विशेष विस्तृत परिचय देते हए स्पष्टीकरण किया गया है । प्रयत्न करने पर स्पष्ट समझ में आ सकता है । राग-द्वेष की निविड़ प्रन्थि"ग्रन्थि" यह एक संस्कृत शब्द है । इसका अर्थ “गाँठ" होता है । धागे सतली या रस्सी की गाँठ, उसके दो भागों को मजबूती से पकड़े रहती है। गन्ने व बांस में जो थोड़ी-थोड़ी दूरी पर, अर्थात् सन्धि स्थल पर, जो गाँठ होती है वह अन्य स्थान की अपेक्षा ज्यादा कठोर होती है। गन्ना खाने वाला व्यक्ति गांठ वाले भार को आसानी से नहीं चबा पाता है। बाँस वृक्ष के मूल में दीर्घकाल से रही हुई गाँत अत्यन्त कठोर व दुर्भद्य होती है । कहा जाता है कि रेशम की गाँठ सबसे ज्यादा कठिन होती है। रेशम में धागे की गाँठ खोलना कोई सरल कार्य नहीं है। इसे खोलने में बड़े से बड़े शक्ति शाली व्यक्ति को भी छट्टी का दूध याद आ जाता है। ठीक इसी तरह समझ लीजिरे कि आत्मा पर लगे हुए मोहनीय आदि कर्मों की तीव्रता के कारण "राग-द्वेष" के गाँठ बंध जाती है । विशेषावश्यक भाष्य में कहा है कि गंठि ति सुकुम्भेओ कक्खडघणरूढगूढगांठि व्व । जीवस्स कम्मजणिओ घणराग-द्दोसपरिणामो ॥ -आत्मा के कर्म जनित ऐसे राग-द्वेष के परिणामस्वरूप जो गाँठ बंधतं हैं, वह अत्यन्त कठोर, निबिड़, दुर्भेद्य बांस वृक्ष की (सन्धि) गांठ की तरह होती है आत्मा का राग-द्वेष रूप, कर्म जनित, अतिशय मलिन परिणाम रूप यह गाँठ होतं ७२ . कर्म की गति न्यारी
SR No.002481
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherJain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha
Publication Year
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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