________________
(१) ज्ञानावरणीय कर्म की ३० कोडाकोडी सागरोपम, (२) दर्शनाबरणीय कर्म की –३० कोडाकोडी सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति (३) वेदनीय कर्म की -३० कोडाकोडी सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति (४) अन्तराय कर्म की -३० कोडाकोडी सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति (५) मोहनीय कर्म की -७० कोडाकोडी 'सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति (६) नाम कर्म की -२० कोडाकोडी सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति (७) गोत्र कर्म की -२० कोडाकोडी सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति (८) आयुष्य कर्म की --३३ सागरोपम वर्ष उत्कृष्ट स्थिति ।
इस तरह आठों कर्मों की जो उत्कृष्ट स्थितियां है उनमें से आयुष्य कर्म को बन्ध स्थिति को छोड़कर शेष सात कर्मों की उत्कृष्ट बंध स्थितियों का स्थितिघात करता हुआ अर्थात् घटाकर कम करता हुआ जीव आगे बढ़ता है; और अन्ततः कोडाकोडी सागरोपम के अन्दर की कर लेता है, अर्थात् अब सिर्फ १ कोडाकोडी सागरोपम के अन्दर की स्थिति कर लेता है। अब आगे इतनी ही खपानी शेष रहती है। यह बड़ा भागीरथ कार्य जीव यहां पर करता है।
आयुष्य कर्म एक भवाश्रयि होने के कारण इसका प्रश्न बीच में नहीं आता। इसका स्थितिघात करने की आवश्यकता नहीं रहती जबकि शेष सात कर्म जन्म-जन्मान्तराश्रयि रहते हैं । अतः उनकी लम्बी स्थिति को काटकर जीव कम कर लेता है । बस यही यथाप्रवृत्तिकरण करने का मुख्य प्रयोजन था। इससे कर्मों की उत्कृष्ट बंध स्थिति का घात (स्थिति घात) करने का कार्य सिद्ध होता है । इसके बाद जीव ग्रन्थिप्रदेश के समीप आकर आगे के अपूर्वकरण आदि करण करता है । प्राथमिक कक्षा की इस आत्म-विकास की प्रक्रिया को निम्न चित्र से सरलता से समझा जा सकता है। "
४. अपूर्वकरण
५.संपूर्ण अपिवृत्तिकरण
१. मिथ्यात्वी का यथा प्रवृत्तिकरण काल
१०. समकित पूज
P
HYTV1 ......... . ...
:: ... ...
: .. ..
.
११. मिथ्यात्व पुंज
EE
....२
८. उपशम सम्यक्त्व का
अंतर्मुहर्तकाल
B
नित्र स्थिति
७. अंतकरण निहाकाल
रामनिवृत्ति पूर्वकाल मियाख उपरकी
७०
कर्म की गति न्यारी