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दर्शनावरणीय कर्मबंध की स्थिति
उपरोक्त बताए हुए कर्मबंध के आश्रव हेतुओं से अशुभ-अशुभतर-अशुभतम परिणाम एवं कषायों की तीव्रता और मंदता तथा शुभाशुभ लेखाओं आदि के आधार पर जैसी पाप प्रवृत्ति करके जो कर्म उपाजित किया जाता है उनकी जघन्य तथा उत्कृष्ट बंध स्थिति इस प्रकार पड़ती है।
आवितस्तिसृणामन्तरायस्य च त्रिंशत्सागरोपमकोटीकोट्य परा स्थितिः ॥८-१६॥
ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय तथा अन्तराय इन कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति 30 कोटा-कोटि . सागरोपम है तथा कम से कम-न्यूनतम-जघन्यस्थिति ९२ अर्न्त मुहूत है । इतनी उत्कृष्ट स्थिति अबाधकाल ३००० वर्ष का रहता है ।
देशघाती-सर्वघाती प्रकृतियाँ--
दर्शनावरणीय कर्म चार घाती कर्मों के विभाग में दूसरा घाती कर्म कहलाता है । अतः इसकी नौ ही कर्म प्रकृतियां घाती प्रकृतियाँ कहलाती हैं ।
दर्शनावरणीय कर्म की ९ घाती प्रकृतियाँ
(२)
देशघाती-४
सर्वघाती-६
चक्षुदर्शनावरणीय
अचक्षुदर्शनावरणीय
अवदिदर्शनावरणीय
___ केवलदर्शनावरणीय
निद्रादि-५
निद्रादि-५
वंसण तिग देशघातियाँ, केवलदर्शन एक । सर्वघाती ए दाखीओ, वादल मेघ विवेक ।।
कर्म की गति न्यारी
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