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अर्थात् जल्दी सोना और जल्दी उठना ही शारीरिक और मानसिक आरोग्य के लिए लाभदायक होता है, परन्तु वर्तमान काल में लोगों ने सोने-उठने के समय की काल मर्यादा सर्वथा तोड़ दी हो ऐसा लगता है । क्योंकि १२ - १ बजे तक लोग सोते भी नहीं है, और सुबह सूर्योदय के बाद १-२ घंटे अर्थात् ८-९ बजे तक उठने की आदत बनाते हैं । यहां आयुर्वेदशास्त्र कहता है कि मनुष्य जितना ही सूर्योदय के बाद देरी से उठता है उतना ही उसका आयुष्य कम होता हैं, जितना सूर्योदय से पहले उठता है उतना उसका आयुष्य स्वस्थ रहता है । अतः सोने के समय के विषय में आयुर्वेदशास्त्र कहता है कि - रात्रि के द्वितीय पहर में सोना चाहिए, और दो प्रहर ६ घंटे की परिमित निद्रा लेकर रात्रि के चतुर्थ प्रहर में सूर्योदय से चार घड़ी पहले उठना चाहिए। (एक प्रहर = ३ घंटे, १ घड़ी = २४ मिनिट, और २ घड़ी = ४८ मिनिट) वैसे तो मनुष्य के लिए ६ घंटे की नींद पर्याप्त है, परन्तु अत्यन्त गहरी - प्रगाढ नींद के लिये ३ घंटे भी पर्याप्त होते हैं । स्वप्नभरी नींद या अर्धनिमिलित तंद्रा जैसी नींद लम्बे काल तक भी आये तो भी सन्तोष नहीं होता है ।
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पौ फटने के पहले ब्राह्ममुहूर्त में उठने से जीवन स्फुर्तिमय, एवं नियमित रहता है तथा प्रभु स्मरण, सामायिक, पूजा-पाठ, जाप-ध्यान आदि बड़े आनन्द से अच्छे शान्त वातावरण में अच्छी तरह होते हैं । यही उपासना यदि देरी से की जाए तो अस्थिर चित्त से होती है ।
प्रश्न – सोते हुए को जगाना आसान है ? स्वाभाविक बात है कि नींद में सोए हुए को जगाना आसान है, परन्तु नींद उड़ जाने के बाद भी जो आलस्य में पड़ा रहे उसे उठाना एक प्रकार का सिरदर्द है ।
मद
८
मज्जं विषय कषाया निद्दा विकहा य पञ्चिमी भणिया ।
ए ए पञ्च पमाया जीवं
पाडंति संसारे ।
विषय
२३
कर्म की गति न्यारी
५ प्रकार के प्रमाद
पाँच प्रकार के प्रमाद
कषाय ४
निद्रा
५
विकथा
४ = ४४
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४५