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________________ १२॥ वर्ष की समाप्ति के अन्तिम काल में वैशाख सुदी दशमी के दिन चौथे प्रहर की संध्या के समय शाल वृक्ष के नीचे गोदोहिकासनस्थ अवस्था में स्थिर बैठे एवं मनोयोग से शुक्लध्यान की अवस्था में चिन्तन की धारा को प्रथम से दूसरे चरण में सूक्ष्म से सूक्ष्मतम करते जा रहे थे । क्षपकश्रेणी में प्रारूढ़ प्रभु कर्मों का सर्वथा क्षय करने की प्रक्रिया में लीन थे। उसी क्रम से मोहनीय कर्म का सर्वथा क्षय करके वीतरागता प्राप्त की। अब शुक्ल ध्यान के दूसरे चरण से तीसरे चरण की ओर अग्रसर होते ही शेष तीनों घाती कर्मों का क्षय होते ही महावीरस्वामी को अनन्तवस्तुविषयक अनुपम अनन्त केवलज्ञान - केवलदर्शन प्राप्त हुआ। श्री वीरप्रभु केवली-सर्वज्ञ-सर्वदर्शी बने। - केवलज्ञान प्राप्ति की यही प्रक्रिया है । इस प्रक्रिया से भूतकाल में अनन्त प्रात्माओं को केवलज्ञान प्राप्त हुआ है और भविष्य में भी इसी प्रक्रिया से गुजरते हुए ही केवलज्ञान प्राप्त होगा। अतः कैवल्य की प्राप्ति का यही एक मात्र राजमार्ग है । दूसरा विकल्प ही नही है। चाहे यह केवलज्ञान तीर्थंकर भगवान को हो या चाहे हमारे जैसे सामान्य-साधारण व्यक्ति को हो, या किसी पुरुष को.या चाहे किसी स्त्री को हो । जिस किसी को भी हो, परन्तु होगा इसी राजमार्ग की प्रक्रिया से । अन्य विकल्प ही नहीं है । स्त्रियों को भी केवलज्ञान हो सकता है नन्दीसूत्र के आधार पर केवलज्ञान भवत्थ केवलज्ञान सिद्धकेवलज्ञान सयोगि भवत्थ केवलज्ञान . अयोगिभवत्थ केवलज्ञान प्रथम समय - प्रथम समय चरित समय अचरित समय . : प्रागंतर सिद्धकेवलज्ञनं परंपरसिद्ध केवलज्ञानं १५ प्रकार से "३०८ कर्म की गति न्यारी
SR No.002479
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherJain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha
Publication Year
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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