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________________ तथा अन्तराय कर्म-इन (३) अन्तराय कर्म-इन सबके क्षय हो जाने से अनन्त केवलज्ञान, अनन्त केवलदर्शन, तथा अनन्त दानादि लब्धियां एवं अनन्त शक्ति मादि प्राप्त हो जाते हैं . . शुक्लध्यान में केवलज्ञान ध्यान का वर्गीकरण- . ध्यान - ध्यान अशुभध्यान शुभध्यान' प्रार्तध्यान ४ रोद्रध्यान ४ धर्मध्यान ४ . शुक्लध्यान ४ १ २-(केवलज्ञान) ३ ४ . इस तरह ध्यान का विभाजन किया गया है । अशुभ के मातं पोर रोद्र ध्यान की विचारधारा को छोड़कर प्रात्मा जब शुभ ध्यान में प्रवेश करती है, तब सर्वप्रथम धर्म-ध्यान में प्रवेश करती है । उसके चार चरणों में से गुजरती हुई मात्मा शुक्ल ध्यान में प्रवेश करती है । क्रमशः आगे बढ़ती हुई आत्मा ध्यान की विचारधारा को सूक्ष्म से सूक्ष्मतम करती जाती है । प्रत्येक ध्यान के चार-चार अवान्तर भेद दर्शाये गये हैं । शुक्लध्यान के चार भेदों में प्रथम के दो भेद पसार करने के बाद तीसरे भेद में प्रवेश करते ही जीव को यहीं केवलज्ञान-केवलदर्शन की प्राप्ति हो जाती है । यहीं चारों घनघाती कर्मों का क्रमशः क्षय हो जाता है और प्रात्मा वीतरागीवंज्ञससर्वदर्शी बन जाती है । फिर तेरहवें गुणस्थानक-"सयोगी केवली" के पद पर मारूढ मात्मा वर्षों तक नहीं, सदा के लिए केवली-सर्वज्ञ ही रहती है। भगवान महावीर स्वामी को-केवलझान चरम तीर्थपति परमात्मा महावीरस्वामी ने ३० वर्ष की यौवनावस्था में महाभिनिष्क्रमण करके चारित्र स्वीकार किया। प्रागारी-घरबारी में से अणगारीसाधु-त्यागी-तपस्वी बनें । एकाकी विहार करते हुए १२।। वर्षों तक घोर तपश्चर्या की एवं भारी उपसर्ग सहन किये। कठोर अप्रमत्त भाव की साधना के अन्त में कर्म की गति न्यारी ३०७
SR No.002479
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherJain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha
Publication Year
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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