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इस दूसम काल के दोष से दूषित ऐसे हमारे जैसे प्राणियों का क्या होता यदि जिनेश्वर के आगम जिनागम यदि नहीं होते ? सही बात है कि यदि ऐसे परम तारक सर्वज्ञ वीतराग भगवान के उपदेश स्वरूप जिनागम न होते, हमारे जैसों को पढ़ने के लिए नहीं मिले होते, तो आज हमारा क्या होता ? हमारा ज्ञान कहां से बढ़ता ? प्रज्ञान निवृत्ति कैसे होती ? अतः अनन्त उपकार मानते हैं पागम ग्रन्थ निर्माण करने वाले महापुरुषों का तथा उसकी व्याख्या करने वाले, उन्हें मुद्रित करने करानेवालों का तथा उनकी रक्षा-सुरक्षा एवं संवर्धन करने-करानेवालों का जिसके कारण प्राज वे आगम ग्रन्थ हमारे तक पहुंच सके, हमें प्राप्त हो सके। अतः ऐसे शास्त्र संग्रहालय-ज्ञान भण्डारादि अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुए हैं। यह भी ज्ञानाचार की उपासना है।
पुस्तकालय-वाचनालय जैसे लोग पानी की प्याऊ लगाते हैं और प्यासों को पानी पिलाकर पुण्यो. पार्जन करते हैं । पानी जैसे जीवन का प्रावश्यक एवं उपयोगी अंग है ठीक वैसे ही ज्ञान-पिपासा का शमन करने के लिए साहित्य भी अत्यन्त उपयोगी एवं अनिवार्य साधन है । पानी की प्याऊ की तरह ज्ञान की प्याऊ के रूप में पुस्तकालय-वाचनालय भी अनिवार्य रूप से उपयोगी साधन है । जिससे वाचक की जिज्ञासा-ज्ञान पिपासा सन्तोषी जा सकती है। प्रादर्श उच्च विचारधारा वाले सत्साहित्य का संचय तथा प्रकार के पुस्तकालय-वांचनालय में होना चाहिए । आर्थिक दृष्टि से समाज का प्रत्येक मानव सम्पन्न नहीं हो सकता है। दूसरी तरफ साहित्य मुद्रण मादि भी महगा होता जा रहा है । सर्व प्रकार का साहित्य खरीदना या बसाना यह सब के वश की बात भी नहीं रह गई है । ऐसी स्थिति में उच्च कक्षा के आदर्श साहित्य से समाज के लोग वंचित न रह जाय अतः पुस्तकालय-वांचनालय अत्यन्त उपयोगी है । ये सही अर्थ में ज्ञान मन्दिर के रूप में उपयोगी है । प्रत्येक व्यक्ति पुस्तकों को प्राप्त कर सके, पढ़ सके । क्योंकि चिन्तन के लिए सही खुराक मिलने से, अच्छी विचारधारा मिलने से सम्भव है दुर्जन-सज्जन बन जाय, अनेकों की विचारधारा में परिवर्तन आ सकता है । साहित्य एक अच्छे कल्याण मित्र की तरह उपकार करता है । अतः ऐसे पुस्तकालयवांचनालय ज्ञान-मन्दिर के रूप में निर्माण करके जन-जन तक उच्च ज्ञान पहुँचाना यह ज्ञान की सुन्दर सेवा है । समाज का तथा देश एवं व्यक्ति का उद्धार करने का यह एक उत्तम विकल्प है।
साहित्य मुद्रण एवं प्रचार साहित्य समाज का दर्पण है। समाज का प्रतिबिम्ब साहित्य रूपी दर्पण में पड़ता है । सामाजिक दूषणों को दूर करने के लिए सत् साहित्य का प्रचार-प्रसार
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कर्म की गति न्यारी