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श्रत ज्ञा. क., १७. वस्तु श्र त ज्ञा. क., १८. वस्तु स. श्रुत ज्ञा. क , १९ पूर्व श्रुत ज्ञा क, २०. पूर्व समास श्र त ज्ञा. क. । इस तरह ये श्र तज्ञानावरणीय के २० भेद बनते हैं। ये कर्म उन उन प्रकार से होने वाले श्र तज्ञान के बोध को रोकते हैं। अर्थात् अक्षर से या पद से जो बोध होता था वह बोध उसी के प्रावरणीय कर्म के कारण नहीं होगा। माषतुष मुनि के विषय में यही हुआ। पद श्र तज्ञानावरणीय कर्म के उदय में आने के कारण एक पद भी सही रूप से पाठ नहीं हो पाया । प्रतः वे हमेशा “मा रुष-मा तुष" के स्थान पर माष तुष ही पाठ करते रहे । ऐसा ही सभी प्रकार के बीसों भेदों के कर्म उदय में आने से उन-उन तरीकों से होने वाले श्रत का बोध नहीं होता है । उदाहरणार्थ अाज हमारे में पूर्व एवं पूर्व समास श्रुतज्ञानावरणीय कर्म का उदय पड़ा हुअा होने के कारण एक पूर्व का या सभी पूर्वी का ज्ञान उदय में नहीं है । उस पूर्व के विषयों का सर्वथा अज्ञान ही उदय में है। इसी तरह सभी भेदों के विषय में समझना चाहिए । यदि तथा प्रकार के भेद का श्रुतज्ञानावरणीय कर्म उदय में नहीं होगा, या बधा हुप्रा नहीं होगा, या सत्ता में ही पड़ा नहीं होगा तो उस प्रकार के श्रु त का बोध अवश्य होगा, अन्यथा इससे विपरीत यदि तथाप्रकार का श्र तज्ञानावरणीय कर्म बंधा हुअा होगा और उदय में आया होगा तो उस प्रकार के श्रत का बोध नहीं होगा। 'इन्द्रभूति गौतम' को वेद पद के एक श्लोक का अर्थ करते समय एक अक्षर "न" किस तरफ लगाना यह भ्रम हो गया
और "," को पिछले अन्तिम चरण के साथ लगाकर अर्थ करने से "आत्मा नहीं है" ऐसा अर्थ निकाला। आगे चलकर यही अर्थ उनके दिमाग में शंका का स्थान ले लेता है और उनकी वैसी मान्यता बन जाती है कि प्रात्मा नहीं है । एक अक्षर के भी सही ज्ञान की आवश्यकता रहती है। अक्षर श्रु तज्ञान से अक्षर का भी सही बोध होता है और अक्षर श्र तज्ञानावरणीय कर्म के उदय के कारण उतना भी सही बोध नहीं हो पाता विपरीत हो जाता है क्योंकि ज्ञानावरणीय कर्म अज्ञान की तरफ अग्रसर करता है । ज्ञान को ढकना और अज्ञान को सामने लाना यह ज्ञानावरणीय कर्म का कार्य है । अत: ऐसे ज्ञानावरणीय कर्म को बांधने से बचना चाहिए।
शास्त्र पोथी बेचने चला
प्राज धर्मशास्त्र की कीमत कितनी है ? उसका महत्त्व कितना है ? धर्मशास्त्र के प्रति हमें आदर कितना है ? आज घरों में सजावट और दिखावे का प्रदर्शन चला है उसमें ५ १० लाख को फ्लेट या बंगला, और उसमें २-३ लाख का फर्नीचर होना चाहिये तथा उसके शो केस में १-२ लाख के कलाकृत्ति के चित्रादि होने चाहिए । ऐसी हवा चल पड़ी है। धर्मशास्त्र की पोथियों से शो बिगड़ता है। उससे कीड़े पड़ जाते हैं और फर्नीचर बिगड़ जाता है। मेहमान आने पर हमारे घर की शोभा की प्रशंसा नहीं करते । इत्यादि हेतुओं को आगे करके धर्मशास्त्रों की पोथियां या प्राचीन
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कर्म की गति न्यारी