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________________ शताब्दी के इन महामहोपाध्याय यशोविजयजी महाराज ने काशी नरेश की राज्यसभा में हजारों दिग्गज ब्राह्मणों की सभा में शास्त्रार्थ किया। वर्णमाला के ४ वर्ग के औष्ठय अक्षरों का, तथा त वर्ग के दन्तय अक्षरों का उच्चारण न करने की शरत से शास्त्रार्थ किया एवं सिद्धांत विजेता बनकर महामहोपाध्याय की पदवी प्राप्त की । अपनी अगाध तर्क शक्ति से अनेक तर्कयुक्त न्यायादि ग्रन्थों का प्राविष्कार किया। इस तरह ज्ञान के क्षेत्र में बेजोड़ प्रतिभा सम्पन्न महापुरुष बने । इस तरह इतिहास में दृष्टिपात करने से ऐसे अनेक महान् पुरुषों के दृष्टांत दृष्टिपथ में आते हैं जिनकी गजब की बुद्धि प्रतिभा हमारे लिए बुद्धि की परे की वात हो जाती है । शून्य में से सर्जन करने की उनकी सर्जनात्मक शक्ति थी। जबकि आज हमारी सर्जनात्मक शक्तियां नहीं हैं। आज हम अनुकरणवृत्ति वाले रह गए हैं । हम उन महापुरुषों के लिखे हुए शास्त्रों को पढ़ भी नहीं पाते हैं, अतः ऐसा लगता है कि आज हमारी बुद्धि उनकी तुलना में रत्ती भर भी नहीं है । बुद्धि का बौद्धिक विकास करने के लिए ज्ञानाचार की उपासना करनी पड़ती है। जैसे चाक को घिसकर धारदार बनाई जाती है वैसे ही शास्त्रों की कसौटी पर बुद्धि को घिसकर तेज बनाई जाती है। यदि मिली हुई बुद्धि का सदुपयोग न किया जाय तो पड़े हुए लोहे को जिस तरह जंग लग जाता है उसी तरह ज्ञान की उपासना न करने से मिली हुई बुद्धि को जंग लगता है । पड़ी-पड़ी बुद्धि नष्ट हो जाती है । जिस तरह एक पहलवान प्रतिदिन व्यायाम करता है, अनेक प्रकार की कसरत करता है, और शरीर सौष्ठव बनाकर हृष्ट-पुष्ट बनता है, यह तो शारीरिक कसरत हुई उसी तरह बुद्धि की भी कसरत करनी चाहिए, बुद्धि की कसरत शास्त्रीय सिद्धांतों के पठन-पाठन एवं चिन्तन मनन से होती है। अतः बुद्धि को जंग न लगे इसलिए प्रतिदिन शास्त्र सिद्धांत-स्वाध्याय-चिन्तन मनन आदि करना चाहिए। आसन व्यायाम और पाहार आदि जिस तरह शारीरिक कमजोरी को हटाकर शक्ति प्रदान करता है उसी तरह ज्ञान-ध्यान-स्वाध्याय-चिन्तन मनन अध्ययन अध्यापन आदि ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय करके ज्ञानशक्ति बढ़ाता है। उपरोक्त नियमानुसार यदि हमें सही या अच्छी तेज या कुशाग्र बुद्धि मिले, ऐसी इच्छा हो तो वर्तमान में ही ज्ञानार्जन के लिए सही दिशा में प्रयत्न करना चाहिए अर्थात् सम्यग्ज्ञान उपार्जन करने की दिशा में बुद्धि लगानी चाहिए। बुद्धि का सदुपयोग जगत् में सभी वस्तुओं का उपयोग होता है । धन सम्पत्ति, शक्ति तथा बुद्धि का भी उपयोग किया जाता है। उपयोग दोनों तरीकों से होता है- सदुपयोग, दुरुपयोग । मिली हुई शक्ति, सम्पत्ति एवं बुद्धि का सही दिशा में सही उपयोग २७० कर्म की गति न्यारी
SR No.002479
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherJain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha
Publication Year
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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