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________________ ज्ञानाचार की उपासना जैन दर्शन के अन्दर मुख्य रूप से पाँच प्राचार बताए गये हैं। ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार, वीर्याचार ये पांच आचार प्रात्मा के ही मूलभूत ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य- इन्हीं पांच गुणों की उपासना के आचार हैं। स्वगुणोपासना प्रात्मिक धर्म है। स्व = प्रात्मा, गुण = ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्यादि, उपासना = साधना या आचार प्रणाली । अत: प्रात्म गुणों की उपासना करना यह आचार धर्म है। पाँच प्रकार के प्रात्मिक गुणों की पाँच प्राचारों की प्रक्रिया से उपासना की जाती है। प्रस्तुत विषय में ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय या क्षयोपशम करने के लिए ज्ञानाचार की उपासना करना यह आचार धर्म है । शास्त्र के अन्दर ८ प्रकार के ज्ञानाचार बताए गए हैं। काले विणये बहुमाणे, उवहाणे तह अनिन्हवणे । वंजण अत्थ तदुभए, अट्ठविहो नाणमायारो॥ (१) काले-अर्थात् योग्य काल में पाठादि करना, अध्ययन-अध्यापन करना। (२) विणये-विनयपूर्वक । पाठदाता, ज्ञानीगुरु, विद्यागुरु, धर्मगुरु प्रादि से शिष्टता-नम्रता पूर्वक पाठादि ग्रहण करना । (३) बहुमाणे-बहुमानपूर्वक । ज्ञान-ज्ञानी-ज्ञानोपकरणादि का प्रादरपूर्वक बहुमान-सम्मान करना । बाह्य और प्राभ्यन्तर उभय रूप से इनके प्रति सद्भाव एवं प्रीति रखना । अध्ययन-अध्यापन उभय में भावोल्लास एवं उत्साह-उमंगपूर्वक रुचि रखना। (४) उवहाणे-उपधानपूर्वक । प्रागम शास्त्रादि के अध्ययन के लिए योग्यता प्राप्त करने के हेतु से जो विशिष्ट तपक्रियादि किया जाता है उसे उपधान कहते हैं। गुरु के सामीप्य में रहकर विशिष्ट तप एवं क्रिया पूर्वक ऐसे उपधान तथा योगोद्वहन करते हुए गुरुगम से शास्त्रादि पढ़ना यह उपधान ज्ञानाचार है। ___ (५) अनिण्हवणे-अनिह्नवन । गुरु ज्ञान और सिद्धान्तादि का अपलाप न करना । 'नि + हनु" धातु का अर्थ छिपाना ऐसा होता है। भाव में निह्नवन शब्द बना । निह्नवन अर्थात् छिपाना-अपलाप करना । यह दोष है। इसका उल्टा अनिह्नवन अर्थात् प्रशठपने से निर्मायिक भाव से सिद्धान्त प्रादि न छिपाना यह पाँचवा ज्ञानाचार है। (६) वंजण-व्यंजन । व्यङजयते अनेन अर्थः इति व्यंजनम् । अर्थात् जिसमें अर्थ प्रकट होता है, वे व्यंजन कहलाते हैं। वर्णमाला के क, ख, ग, ङ प्रादि सभी कर्म की गति न्यारी
SR No.002479
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherJain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha
Publication Year
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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