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आते ही यहां पाठ करने में एकाएक फरक पड़ गया। गुरुजी ने रोज की भांति पाठ दिया ---परन्तु पाठ हो नहीं पाया । स्मृति काम ही नहीं कर रही थी। १ दिन बीता. गुरुजी ने कहा --पाठ हो गया ? शिष्य ने कहा-जी नहीं । २ दिन बीते, ३ दिन बीते। पाठ याद नहीं हुआ। बुद्धि के ऊपर ज्ञानावरणीय कर्म के बादल छा गए। कर्म के उदय में आने के कारण यह स्थिति खड़ी हो गई। ४-६ दिन बीतने के बाद गुरु महाराज समझ गए कि भारी ज्ञानावरणीय कर्म उदय में आया है ऐसा लगता है। इसलिए गुरु महाराज ने शिष्य को कहा-देखो भाई ! कोई भारी ज्ञानावरणीय कर्म उदय में आया हो ऐसा लगता है, अतः तुम प्रायंबिल की तपश्चर्या निरन्तर करते हुए इस कर्म को खपायो। और साथ ही ज्ञान की उपासना भी करते जामो निरन्तर पाठ भी करते जानो। जिससे ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम होगा और ज्ञान बढेगा। शिष्य ने यह बात स्वीकार की। गुरुजी ने पाठ दिया - "मा रूषमा तुष" बस पाठ के इस सारभूत तत्त्व को याद करते जानो। साथ ही गुरुजी ने अर्थ भी समझाया “मा रूष = किसी पर भी रोष (द्वष) न करो, मा तुष = किसी पर भी तुष-तोष (राग) नहीं करना । जैन शासन एवं मोक्ष मार्ग का यही एक मात्र सार है कि राग द्वेष न करना । वितराग बनने के लिए राग द्वष नहीं करना चाहिए। राग द्वेष ही कर्म के कारण है, एवं भाव कर्म है। यह बात शिष्य के दिमाग में बैठ गई। शिष्य ने इस पाठ को मन्त्रवत् समझकर पाठ करना प्रारम्भ किया। लेकिन कर्म का उदय बहुत भारी होने से "मा रूष-मा तुष" इतने शब्द भी सही याद नहीं हो रहे थे। इसके बजाय माष-तुष ऐसा पाठ याद हो रहा था। अर्थात "मा रूष-मा तुष" इन शब्दों में से 'रू' और 'मा' ये अक्षर भूल जाते थे। प्रत: माष-तुष मुंह से निकलता था । श्रु तज्ञान के १४ या २० भेदों में अक्षर श्रत. पद श्रुत प्रादि के जो भेद बताए गए हैं । उन्हीं के ऊपर श्रु त ज्ञानावरणीय कर्म का आवरण आ जाने से अक्षर, पद, सूत्र, अर्थ याद नहीं रहते विस्मृत हो जाते हैं। कितनों को अर्थ याद रहता है तो सूत्र याद नहीं रहता। इससे उल्टा कितनों को सूत्र याद रहता है तो अर्थ याद नहीं रहता। इसी तरह कितनों को अक्षर या शब्द कहने पर भी पूरा पद या श्लोक याद नहीं आता। कितनों को पूरा पद याद पाने पर भी अर्थ याद नहीं पाता । कितनों को उसी पद का यह अर्थ है यह निश्चयपूर्वक याद नहीं आता। सूत्र किसी का और अर्थ किसी का ऐसा भ्रांतिपूर्वक याद आता है। कितनों की स्मरणशक्ति तेज होती है अतः उन्हें सूत्र या पद आदि याद रहते हैं । परन्तु समझशक्ति कम होने से अर्थ समझ में नहीं आता। ठीक इससे विपरीत कितनों की समझशक्ति तेज होने से अर्थ, भावार्थ आदि अच्छी तरह समझ में आते हैं । परन्तु सूत्र या पद उनको याद नहीं रहते, दिमाग में नहीं बैठते ।
कर्म की गति न्यारी
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