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कितने प्रकार की मछलियां हैं ? यही कोई नहीं गिन पा रहा है तो समस्त तिर्यंच गति के जीवों की संख्या और प्रकार गिनने की तो बात ही कहां सम्भव है ? सिर्फ स्थलचर में भी देखें तो हाथी-घोड़ा, ऊंट-बैल, गधा-बकरी, बन्दर-सुअर, शेरचिता-सिंह आदि न मालुम कितने प्रकार के जीव हैं ? कितनी बड़ी संख्या है ? तिर्यंच गति में ही जीव के अनन्त जन्म हो जाय इतनी लम्बी-चौड़ी संख्या है । चारों गति में जीवों का परिभ्रमण :
___इस तरह हमने चारों गति में जीवों का सतत रिभ्रमण देखा । यह गमनागमन अविरत सतत चालू रहता है। जन्म-मरण,जन्म के बाद मृत्यु और मृत्यु के बाद पुनः जन्म; फिर से जन्म और फिर से मरण यह चक्र सतत चल रहा है। इस जन्ममरण के चक्र के लिए धरातल इस चार गति का है । जैसे घाणीसे बंधा हुआ कोल्हू का बैल दिन-रात चलता रहता है। आंख पर पट्टी बंधी हुई है। बाहर देख तो सकता नहीं है कि मैं कितना दूर निकला गया? परन्तु सोचता है कि दिन-रात चलते-चलते मैं ५०-१०० माइल चला? या कितना चला? एक गांव से दूसरे गांव पहंचा कि नहीं? परंतु जब उसे छोड़ा जाता है तब पता चलता है कि अरे...रे...! मैं जहां था वहीं हूँ।एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सका। ठीक वही स्थिति हमारी भी है। चार गति के इस संसार चक्र में हम सतत घूमते रहते हैं। एक जन्म से दूसरे जन्म में जाते हैं, एक जाति से दूसरी जाति में जाते हैं। एक गति से दूसरी गति में जाते हैं, जन्म लेते हैं, मरते हैं, फिर जन्म लेते हैं, फिर मरते हैं। इस तरह यह चक्र चलता रहता है। सभी जीवों की यही दशा है और मेरी भी यही दशा है। इस तरह अनंत काल बीत गया। चारों गति में घूमता हूँ, भटकता हूँ, सतत परिभ्रमण कर रहा हूँ। परन्तु आज भी ज्ञान योग से देखें, या ज्ञानी भगवंत से पूछं तो पता चलेगा कि जहाँ था वहीं हूँ। इसी चार गति के चक्र में घूमता जा रहा हूँ। चार गति के संसार चक्र से बाहर नहीं निकल पा रहा हूं। न मालूम एक-एक गति में मेरे कितने जन्म-मरण होते गए और आज दिन तक कितने जन्म बीत गए? यह कैसे पता चले? चार गति का यह संसार चक्र अभिमन्यु के कोठे की तरह बड़ा ही गहना है। संसार चक्र का चक्रव्यूह :
__एक सीधा स्वस्तिक है और दूसरा गोल स्वस्तिक है। आकृति भेद हैं परन्तु बात वही है । ध्यान से देखने पर पता चलेगा कि स्वस्तिक की चारों पंखुडियां कितनी लंबी है। एक एक गति की दिशा देखिए, चारों दिशा में घूमती हुई पूरा गोल चक्र काट रही है। एक ही गति में जीव ने कितने जन्म धारण किए है ? यही बताना असम्भव सा लगता है। अभिमन्यु के गूढ़ कोठे की तरह इस संसार चक्र में फंसा
कर्म की गति नयारी
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