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________________ नरक गति में जाकर नारकी बनता है। तिर्यंच गति में जाकर पशु-पक्षी के जन्म धारण करता है। उदाहरण के लिए एक राजा की बात देखें । राजा शिकार के लिए घोड़े पर तेज रफ्तार से जा रहा था। दूर एक वृक्ष पर पके हए मीठे बेर के फल दिखाई दिए। राजा को बेर बहुत ज्यादा प्रिय थे। अतः देखते ही मन ललचा गया। योगानुयोग रास्ता भी उसी वृक्ष के नीचे से जा रहा था। राजा ने सोचा वृक्ष के नीचे से पसार होते समय तोड़ लूंगा। ज्योंही घोड़ा वृक्ष के नीचे से पसार हुआ कि दूसरी डाल पर लटक रहा रस्सी का फांसा राजा के गले में लग गया। तेज रफ्तार से घोड़ा पसार हो गया और राजा के गले में फांसी लग गई। देखते ही देखते राजा के प्राण पखेरु उड़ गए। उसी समय किसी पोपट ने उस पके हए मीठे बेर फल में चांच मारी, झूठा किया, नीचे गिराया, राजा का जीव अन्तिम इच्छानुसार उसी बेर में जाकर कीड़े का जन्म धारण करता है । सोचिए, मनुष्य गति में से तिर्यंच गति के तेइन्द्रिय पर्याय के कीड़े के रूप में कैसा जन्म मिला । मनुष्य के लिए एक सबसे अच्छी सुविधा यह है कि यदि मनुष्य चाहे और तद्नुसार पुरुषार्थ करे तो पुनः मनुष्य भी बन सकता है। एक बार प्राप्त हुई मनुष्यगति के बाद भी तुरन्त मनुष्य बन सकता है। जो सुविधा देवगति में नहीं थी वह मनुष्य गति में है। परन्तु इसके लिए पूरा पुरुषार्थ करें तो ही यह सम्भव है। उदाहरणार्थ भगवान महावीर स्वामी ने अपनी २७ भव की परम्परा में २२ वां भव मनुष्य गति में विमल राजकुमार का किया और पुनः सीधे ही २३ वां जन्म भी मनुष्य गति में प्राप्त किया। जहां वे प्रियमित्र चक्रवर्ती बने । इस तरह मनुष्य से मृत्यु पा कर पुनः मनुष्य बनने का सौभाग्य प्राप्त किया। ऐसा सौभाग्य बहत वीरले जीव प्राप्त करते हैं। अतः मनुष्य का जीव-मनुष्य गति से चारों गति में जा सकता है। चारों गति में कहीं भी जन्म ले सकता है। तिर्यंच का चारों गति में गमन : मनुष्य की तरह तिर्यंच गति का जीव भी चारों गति में जा सकता है। जन्म-मरण धारण कर सकता है। तिर्यंच गति का जीव पशु-पक्षी मृत्यु पा कर देवगति में स्वर्ग में देव भी बन सकता है। जैसा कि पहले बताया है कि उसी तरह पशु-पक्षी मृत्यु पा कर नरक गति में नारकी के रुप में भी जन्म लेते हैं। सिंह मृत्यु पा कर मनुष्य गति में भी आते हैं मनुष्य बनते हैं। वैसे ही तिर्यंच गति के जीव मृत्यु पा कर पुनः तिर्यंच गति में भी जन्म लेते हैं। जैसे घोड़ा मृत्यु पा कर गधा बने, गधा मृत्यु पा कर हाथी बने, ऊँट-बकरी बने, बकरी-सूअर बने, या सूअर मछली बने, या मछली-कछुआ बने या कछुआ-कौवा बने, कौवा-गीदड़ बने, इस तरह तिर्यंच गति के जीव अन्दर ही अन्दर जन्म-मरण धारण करते हैं। उप्तत्ती क्षेत्र भी काफी लम्बा-चौड़ा असंख्य द्वीप समुद्रों का है । एक समुद्र में ही कितनी मछलियां है ? या कर्म की गति नयारी
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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