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भिन्न-भिन्न क्रियाओं में ज्ञान आदि गुणों की पूरी आवश्यकता एवं उपयोगिता स्पष्ट दिखाई देती है। शरीर है जिसके अंगोपांग एवं इन्द्रियां तथाप्रकार की क्रिया करते हैं। मानों कि दोनों हाथों को उल्टी दिशा में गोल-गोल घूमाएं तो एक साथ एकही समय दोनों विपरीत दिशा में नहीं घूम सकते। दाहिना हाथ सीधा दाएं तो बांए गोल घूमाएं
और ठीक उसी समय बांया हाथ बांए से दाए उल्टी (दाहिने हाथ से विपरीत) दिशा में घूमाएं । एक-दूसरे को रोककर अलग से स्वतंत्र रूप से एक को ही चलाएं और दूसरे को खड़ा रखें, एक चलाते जाएं तो यह एक ही क्रिया एक समय एक साथ नहीं गिनी जाएगी। अतः एक क्रिया एक ही समय एक साथ होनी चाहिए यह शर्त याद रखकर दोनों हाथ गति न रोकते हुए एक साथ परस्पर विपरीत दिशा में चलाएं। यह संभव नहीं है, क्योंकि आत्मा का ज्ञान इस क्रिया में कारक है। निमित्त है। यह क्रिया ज्ञानपूर्वक है। ज्ञान के उपयोग बिना तो यह क्रिया होनी भी संभव नहीं है। अब नियम यह है कि एक समय आत्मा के दो उपयोग नहीं हो सकते। एक समय आत्मा का एक ही उपयोग हो सकता है। अतः दोनों हाथ की विपरीत दिशा में गति ये दो क्रिया हो गई। दोनों भिन्न भिन्न क्रिया है। अतः आत्मज्ञान को भिन्न भिन्न उपयोग वाला होना पड़ता है। यह ज्ञानोपयोग एक ही समय में दो रूप में नहीं हो सकता है। अतः एक समय में एक ही क्रिया होगी। या तो आप १ सेकंड के लिए ही क्यों न हो दांया हाथ रोककर बांया हाथ चलाएं। दो में से एक कार्य करिए, दोनों एक साथ संभव नहीं है। क्योंकि आत्मा के ज्ञान का उपयोग एक समय एक ही होता है दो नहीं हो सकते।
दूसरा दृष्टांत लीजिए - हम पुस्तक पढ़ते हैं, पढ़ते समय पूरा पृष्ठ आंखों के सामने दिखाई देता है। पूरे एक पृष्ठ की २२ या ३२ पंक्तियां सभी दिखाई देती है परंतु सभी एक सथ पढ़ नहीं सकते। दो पंक्ति भी एक साथ पढ़ नहीं जाते। भले ही अखबार की १०० या १००० सभी पंक्तियां एक साथ दिखाई देती हो। परंतु दो पंक्ति भी एक साथ पढ़ नहीं सकते हैं। २ पंक्ति तो क्या २-४ शब्द भी एक ही समय एक साथ पढ़ना संभव नहीं है। क्योंकि आत्मा का उपयोग एक समय में एक ही होता है। पढ़ना यह क्रिया ज्ञान गुण के आधार पर ही होती है।
तीसरा एक दृष्टांत और लीजिए - हम जब चलते हैं तब शरीर के हाथ-पैर चलते हैं। यदि देखा जाय तो पैर से चलते हैं चलने में पैर सहायक अंग है । हाथ है कि नहीं ? हाथ को चलाने की आवश्यकता ही नहीं हैं, फिर भी हम देखते हैं कि चलते समय हाथ भी चलते हैं। हाथ चलते हैं इतना ही नहीं हाथ दाएं-बाए पैर के साथ उल्टे क्रम में चलते हैं। अर्थात् बाएं पैर के साथ दाहिना हाथ और दाहिने पैर के साथ बांया हाथ चलता है। इससे उल्टा नहीं। बाएं पैर के साथ बांया हाथ चले और दाहिने पैर के साथ दांया हाथ चले यह संभव नहीं है। ऐसा होता नहीं है। अतः पैर के
कर्म की गति नयारी
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