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________________ द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की अपेक्षाओं से हमें भाषा व्यवहार करना चाहिए। इस तरह यह अनेकांतवाद-स्याद्वाद ज्ञान की प्रक्रिया है। यह राग-द्वेष से बचाने वाली, क्लेश-कषाय से रक्षा करनेवाली, कर्म बंध से बचाने वाली, असत्य-मृषावाद एवं वाचिक-मानसिक हिंसा से बचाने वाली एक विशिष्ट पद्धति है। इसी से वस्तु का ज्ञान सम्यग्ज्ञान होगा तो तज्जन्य श्रद्धा भी सम्यग् होगी। ज्ञान और श्रद्धा दोनों का परस्पर एक दूसरे पर आधार है। ज्ञान सम्यग् होगा तो श्रद्धा भी सम्यग् होगी और श्रद्धा यदि सम्यग् होगी तो ज्ञान भी सम्यग् होगा। अतः सम्यग् ज्ञान के लिए श्रद्धा भी सम्यग् रखनी चाहिए । विशेषावश्यक भाष्य में कहा है कि - "जीवादि तत्त्व विषया रूचिः श्रद्धानं सम्यक्त्वं भण्यते, येन पुनस्तज्जीवादि तत्त्वं रोच्यते श्रद्धीयते तज्ज्ञानम्। या तत्त्व श्रद्धानात्मिका तत्त्वरूचिरुपजायते, तया तत्त्वश्रद्धानात्मक जीवादितत्त्वरोचकं विशिष्टं श्रुतं जन्यते तज्ज्ञानं सम्यग् ज्ञानं अज्ञान-मिथ्याज्ञान निवृत्ति जनकम्।" जीवादि तत्त्व विषयक रूचि रूप श्रद्धा से सम्यक्त्व कहते हैं। जिससे वे जीवादि तत्त्व रूप पदार्थ रूचते हैं, श्रद्धा निर्माण होती है वह ज्ञान है। जो तत्त्व श्रद्धा रूप तत्त्वरूचि जागृत होती है। वह तत्त्व श्रद्धा जीवादि तत्त्वरूप विशिष्ट श्रुत ज्ञान को उत्पन्न करती है। वही ज्ञान सम्यग् ज्ञान है जो अज्ञान एवं मिथ्याज्ञान की निवृत्ति कारक है। अतः ज्ञान की सम्यगता होनी आवश्यक है। सभी जीवों में ज्ञान है आत्मा में ज्ञान है और ज्ञानमय ही आत्मा है। अतः जीव को ज्ञान से भिन्न नहीं कर सकते हैं। उसी तरह ज्ञान को जीव से भिन्न नहीं कर सकते हैं। दोनों का परस्पर अविनाभाव संबंध है। एक दूसरे पर एक दूसरे का आधार है। आत्मा में ज्ञान है, और ज्ञानमय ही आत्मा है। अतः संसार का कोई भी जीव होगा वह अवश्य ज्ञानमय ही होगा। भले ही अव्यक्त अवस्था में छोटे स्वरूप में हो या भले ही वह बड़े महान स्वरूप में हो। परंतु ज्ञान अवश्य ही होगा। अंतर सिर्फ ज्ञान के प्रमाण में रहेगा। किसी जीव में ज्ञान का प्रमाण अल्प रहेगा तो किसी जीव में ज्ञान का प्रमाण अत्यधिक ज्यादा भी रहेगा। यह जीव के तथाप्रकार के ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम पर आधारित है। जिस जीव का ज्ञानावरणीय कर्म जितना ज्यादा उदय में रहेगा उसका उतना ही ज्यादा अज्ञानी रहेगा। वैसे ही जिस जीव का जितना ज्यादा ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम रहेगा उसका उतना ही ज्यादा ज्ञान बढ़ा हुआ रहेगा। तथा जिस जीव का ज्ञानावरणीय कर्म यदि सर्वथा क्षय हो चुका रहेगा उसे क्षायिकभाव से संपूर्ण ज्ञान प्राप्त हआ रहेगा। वह अनंतज्ञानी कहलाएगा। हम क्षयोपशमवाले अल्पज्ञानी कहलाएंगे । और कई अज्ञानी कहलाएंगे। अज्ञानी शब्द (१७३) कर्म की गति नयारी
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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