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________________ - सात भंग इस प्रकार है: (१) स्याद् अस्ति घटः । (३) स्याद् अस्ति च नास्ति च घटः । (५) स्याद् अस्ति च अवक्तव्य घटः । (६) अव्यक्तव्यश्च घटः (२) स्यान्नास्ति घटः । (४) स्याद् अवक्तव्य घटः । स्याद् नास्ति - च (७) स्याद् अस्ति च नास्ति च अवक्तव्यश्च घटः ।। . स्याद् का यह अव्यव है जो कथंचित् अर्थ में प्रयुक्त होता है । स्याद् लगाने से यह अन्य अपेक्षाओं का निषेध नहीं करता है (१) स्याद् अस्ति घटः अर्थात् स्वद्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की अपेक्षा से घट का अस्तित्व है। सभी वस्तु अपने द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से विद्यमान है परंतु वही वस्तु पर द्रव्य-क्षेत्र - कालभाव से नहीं है। जैसे घडा स्व द्रव्य रूप से मिट्टी का है। पार्थिव है। जल रूप से नहीं. है। क्षेत्र (स्थान) की अपेक्षा से घडा जयपुर का है परंतु बम्बई का नहीं है। काल (समय) की अपेक्षा जाडे (शीत ऋतु) का है पर ग्रीष्म ऋतु का नहीं है । भाव (स्वभाव) की अपेक्षा काला-श्याम है परंतु लाल नहीं है। इस तरह प्रथम भंग का अर्थ है स्व द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की अपेक्षा से घड़ा है। दूसरे भंग का अर्थ हुआ वही घडा स्व द्रव्य-क्षेत्र काल-भाव की अपेक्षा से विद्यमान होते हुए भी पर द्रव्यक्षेत्र - - काल - भाव से विद्यमान नहीं है । जिसका स्व द्रव्य-क्षेत्र - काल-भाव की अपेक्षा अस्तित्व है उसीका पर द्रव्य-क्षेत्र - काल-भाव की अपेक्षा नास्तित्व समझना चाहिए। तीसरा भंग - पहले दूसरे दोनों भंगों का संयुक्त स्वरूप है। वही घट अस्ति-नास्ति दोनों अपेक्षा से एक देखा जाता है, अतः वस्तु स्वरूप की अपेक्षा अस्तिरूप होते हुए भी पर रूप अपेक्षा से नास्तिरूप है। नहीं है। वस्तु की दोनों अपेक्षाओं का समूहात्मक ज्ञान कराता है वह तीसरा भंग है । (४) चौथा भंग यह कहता है कि दोनों अपेक्षाओं को किसी एक शब्द से वाच्य नहीं कर सकते हैं अतः अवक्तव्य है। इसलिए कहने में - दूसरे के सामने कथन करने में हम अस्ति नास्ति दोनों धर्मों को एक शब्द से या एक साथ कथन नहीं कर सकते अतः अवक्तव्य है । चूंकि अस्ति-नास्ति परस्पर विरूद्ध दोनों धर्मों को एक साथ एक शब्द से कैसे कहें ? अतः अवक्तव्य है। (५) जब हम वस्तु को स्वरूप की अपेक्षा सत् कहकर उसकी एक साथ अस्ति-नास्ति रूप अवक्तव्य रूप से विवेचना करना चाहते हैं उस समय वस्तु स्यादस्ति अवक्तव्य नामक पांचवे भेद से कही जाती है। (६) जब हम वस्तु की नास्तित्व धर्म की विवक्षा से एक साथ अस्ति-नास्ति रूप अवक्तव्य रूप से विवेचन करना चाहते हैं उस समय वस्तु स्यान्नास्ति अवक्तव्य भंग से कही जाती है। (७) प्रत्येक वस्तु क्रम से स्व और पर रूप की अपेक्षा अस्ति - नास्ति होने पर भी एक साथ - कर्म की गति नयारी १७१
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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