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की निवृत्ति के बजाय कर्म की प्रवृत्ति ही सतत चलती रहेगी। कर्म बंध की पद्धति :
___ मकान बांधते समय सीमेंट-रेती में पानी डालकर जो मिश्रण किया जाता है। उसमें भी मिश्रण की प्रक्रिया में पदार्थों पर आधार है। पानी यदि बिल्कुल कम होगा तो मिश्रण बरोबर नहीं होगा।
वैसे ही रोटी बनाने के लिए आटे में पानी डालकर मिश्रण करके फिर मसलकर पिंड बनाया जाता है। इसमें भी पानी के कम-ज्यादा प्रमाण पर आधार रहता है। उसी तरह आत्मा के साथ कर्म बंध में भी कषायादि की मात्रा आधारभूत प्रमाण है। सीमेंट-रेती में, और आटे में मिश्रण पानी के आधार पर होता है। वैसे ही आत्मा के साथ जड़ कार्मण वर्गणा के पुद्गल परमाणुओं का मिश्रण कषाय के आधार पर होता है। कषाय ही यहां पर रस का काम करता है। यही कर्म बंध की पद्धति में माध्यम है। जिस तरह पानी कम-ज्यादा हो तो आटे के तथा सीमेंट के मिश्रण में या बंधन में फरक पड़ता है उसी तरह कषायों में तीव्रता या मंदता आदि के
मल:
PRADESH
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निधत्त
निकाचित
कारण कर्म के बंध में भी शैथिल्य या दृढ़ता आती है। अतः कर्म बंध की पद्धति चार प्रकार की है। जो (उपरोक्त चित्र में बताई गई है)।
(१) स्पृष्ट (२) बद्ध (३) निधत्त (४) निकाचित। (१) स्पृष्ट (शिथिल) कर्म बंध - चित्र में दिखाए अनुसार एक युवक टेबल पर
-कर्म की गति नयारी