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लोहे की बड़ी सुइयों से खेल रहा है। सभी सुइयां एक मुठ्ठी में पकड़ कर टेबल पर गिरा दी है। वे सूंइयां एक दूसरी पर गिरी है। ढेर सी हो गई है। युवक अंगुली से एक-एक को अलग कर रहा है। केवल स्पर्श ही है अतः युवक को सुइयां अलग करने में विशेष प्रयत्न नहीं करना पड़ता है। ठीक इसी तरह सामान्य अल्प मात्र कषाय आदि कारण से बंधे कर्म जो आत्मा के साथ स्पर्शमात्र संबंध से ही चिपक कर रहे हैं उन्हें सामान्य पश्चाताप मात्र से ही दूर किये जा सकते हैं । वे स्पर्श कर्म बंध कहलाते हैं । दूसरे उदाहरण से समझें तो धागे में हल्की सी गांठ जो शिथिल ही लगाई गई है वह आसानी से खुल जाती है। या हमारे कपड़े पर पड़ी हुई धूलकण जो झटकने मात्र से ही दूर हो जाती है । वैसा कर्मबंध स्पर्श मात्र कहलाता है। कार्मण वर्गणा के कर्म योग्य पुद्गलं परमाणु के रजकण जो आत्मा के साथ स्पर्शमात्र शिथिल बंध से चिपके हैं वे आसानी से पश्चाताप मात्र से छूट जाते हैं। जैसे प्रसन्नचन्द्र राजर्षि को ध्यान में विचारधारा बिगड़ने से जो कर्मबंध हुआ था वह शिथिल स्पर्श मात्र ही था अतः २ घड़ी में तो कर्मक्षय भी हो गया और कर्म मुक्त हो गए केवलंज्ञान भी पा गए।
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(२) बद्ध (गाढ) कर्म बंध - यह पहले स्पर्श मात्र शिथिल बंध की अपेक्षा थोड़ा ज्यादा गाढ है। ज्यादा मजबूत है। पेक बंडल में से सूईयां जो बंद बंडल में या बक्स में टाइट बांधी गई थी अतः उन्हें छूटी करने में थोड़ी सी कठिनाई आ सकती है। थोड़ा सा प्रयत्न ज्यादा करना पड़ता है। जैसे धागे में गांठ खिंचकर लगाई गई हो तो खोलने में कठिनाई होती है । वैसे ही आत्मा के साथ कर्म का बंध जो गाढ-मजबूत हुआ हो वह बद्ध कक्षा का बंध है गाढ है। केवल पश्चाताप मात्र से वे कर्म नहीं छूट सकते। उनके क्षय के लिए प्रायश्चित लेना पड़ता है। उदाहरण के लिए अमुत्ता मुनि को प्रायश्चित करते हुए कर्मों का क्षय हो गया । इस दूसरे प्रकार में कुछ शिथिल अंश भी होता है और कुछ गाढ बंध होता है। यह बंद्ध कहलाता है।
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(३) निधत्त कर्म बंध - सूइयां कई वर्षों से चिपकी हुई पड़ी है जिसमें पानी या हवामान के कारण जंग लग गया हो, जंग से एक दूसरे के साथ ज्यादा चिपक गई हो वे आसानी से अलग नहीं पड़ती। दूसरे साधन की मदद लेनी पड़ती है या दूसरा उदाहरण है रेशमी धागे में लगाई गई पक्की गांठ जो बहुत जोर से कस कर बांधी गई हो वह अब खोलना बहुत ही मुश्किल है। वैसे ही आत्मा के साथ कर्म का बंध तीव्र कषाय की वृत्ति में बहुत ही ज्यादा मजबूत बंध जाता है । जो आसानी से नहीं छूटते । यह निधत्त प्रकार का बंध पहले दोनों प्रकार के बंध से दुगुना मजबूत है। इस प्रकार के कर्मों का क्षय तप-तपश्चर्या आदि धर्मानुष्ठान विशेष कठिनाई से क्षय होता है । उदाहरणार्थ अर्जुनमाली का दृष्टांत लीजिए ।
(४) निकाचित कर्म बंध - सभी सुंईया जंग या गरमी के कारण पिगल कर्म की गति नयारी
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