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________________ घी या दूध या पानी या तेल था क्या? उसके आधार पर उसकी स्थिति रहेगी। तथा सीमेन्ट के उस खंभे में परमाणु कितनी संख्या में है? सीमेन्ट का प्रमाण कितना है? यह प्रदेश संख्या की बात है। ठीक इसी तरह आत्मा के साथ कर्म बंध की बात आती है तब प्रकति-स्थिति-रस और प्रदेश इन चार की विचारणा की जाती है। बंधे हुए कर्म का स्वभाव क्या है? यह प्रकृति हुई। बंधा हुआ कर्म आत्मा के साथ कितने वर्षो तक चिपका हआ रहेगा? यह स्थिति बंध हआ तो काल मर्यादा को बताता है। तीसरा रस बंध है । बंध की क्रिया में कैसा रस पड़ा है ? उसके आधार पर उसे शुभ या अशुभ फल मिलेगा। तथा अंत में आत्मा में आए हुए कार्मण वर्गणा के पुद्गल परमाणुओं की संख्या कितनी थी? उनका प्रमाण कितना था? कितने प्रमाण में कर्म दलिकों का संग्रह हुआ है यह जानना प्रदेश बंध कहा जाता है। सामान्य समझ के लिए साथ का यह चित्र देखा जाय तो थोड़ा सा इन शब्दों का ख्याल आएगा। इस चित्र में चार भाग में प्रकृति आदि चार स्वरूप समझाया गया है जैसे (१) तपस्वी को पारणा करते समय सुंठ-पीपरामूल की गोली खिलाई जाती हैं। उकाली पिलाई जाती हैं। क्योंकि सूंठ का स्वभाव आयुर्वेद ने दीपक-पाचक बताया है। पित्त शामक तथा वायुनाशक आदि स्वभाववाली चीजें अपना गुणधर्म दिखाती है। ठीक उसी तरह आत्मा पर लगे कर्मों की प्रकृति अर्थात् स्वभाव है कि आत्मा के ज्ञानादी गुणों को ढकना । (२) एक मिठाई की दुकान वाला लड्डु बनाता है और बेचता है। वे लडड कितने दिन तक चलेंगे? बिगड़ेंगे नहीं। वैसे ही आत्मा पर लगे हुए कर्म कितने वर्ष तक रहेंगे? वह स्थिति बंध बताता है। (३) रस-भोजन में षट् रस होते हैं तीखा-खट्टा-मीठा-कड़वा-तूरा-खारा इत्यादि। उसी तरह आत्मा के साथ लगे कर्मों का भी रस होता है। रस बंध में तीव्रता, मंदता आदि के भेद हैं। तथा उस रस बंध के आधार पर कर्मों के फल में शुभाशुभता देखी जाती है। (४) प्रदेश-बंध-बच्चा मिट्टी की गेन्द बनाकर खेल रहा है। उनमें परमाणुओं की संख्या भिन्न-भिन्न है । उसी तरह आत्मा में आए हुए कार्मण वर्गणा के पुद्गल परमाणुओं की संख्या या प्रमाण को प्रदेश बंध कहते हैं । इस तरह चार प्रकार का बंध चार चित्रों के उदाहरण से समझाया है । अब क्रमशः विस्तार से एक-एक का विचार करें - - (१) प्रकृति बंध - प्रकृति का अर्थ है स्वभाव - Nature जड़ पुद्गल परमाणुओं का भी अपना स्वभाव है। कार्मण वर्गणा के जो पुद्गल परमाणु आत्म प्रदेशों के साथ बंधकर एक रस हो गए हैं अब वे अपना कर्म के स्वरूप में स्वभाव दिखाएंगे। प्रति समय ग्रहण किये जाते कर्म स्कंधों में भिन्न-भिन्न स्वभावों का निश्चय होना यह प्रकृति बंध है, आज जीवात्मा अपने ज्ञानादि गुणों के स्वभावानुसार सारी प्रवृत्ति नहीं कर पा रहा है, क्योंकि आत्मा के उन उन गुणों पर कर्म का आवरण आ कर्म की गति नयारी
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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