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१ प्रकृति
Kama
२ स्थिति
कर्मबंध
३ रस
४ प्रदेश
जाने से अब हमारी सारी प्रवृत्ति कर्मानुसार हो रही है। सभी प्रवृत्तियों में कर्म के स्वभाव की प्राधान्यता है । उदाहरण रूप से देखिए - हम राग-द्वेष-क्रोध-मानमाया-लोभ-विषय-वासना कामादि की जितनी भी प्रवृत्ति करते हैं इनमें से कौनसी आत्म गुण के आधार पर हो रही है ? एक भी नहीं । क्योंकि क्रोधादि करना आत्मा का स्वभाव नहीं है। गुण भी नहीं है। ये क्रोधादि स्वभाव नहीं है वास्तव में विभाव दशा की विकृति है परंतु आज हम स्वभाव के रूप में व्यवहार करते हैं - ये तो बहुत क्रोधी है। ये बहुत लोभी है इत्यादि । यह व्यवहार कर्म स्वभाव के आधार पर होता
कर्म की गति नयारी
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