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________________ ABD १०. RORE : S • तेजस PORNER जीवों के लिए उपयोगी है। शरीर, भाषा, मन आदि बनाने में काम आती है। आत्मा इन्हीं पुद्गल परमाणुओं को खिंचकर उनका पिंड़ बनाकर शरीर, भाषा,मन,कर्मादि बनाती है। अतः ये Raw Material के रूप में जीवों के शरीरादि निर्माण में अष्ट महावगेणा उपयोगी है। सभी भिन्न-गुणधर्म • औदारिक वाली है। अतः भिन्न भिन्न कार्य के उपयोग में आती है - • वैक्रिय (१) औदारिक वर्गणा - • आहारको मनुष्यों तथा तिर्यंच गति के पशुपक्षियों के लिए औदारिक शरीर बनाने योग्य ऐसे पुद्गल परमाणुओं के समूह को औदारिक • मन वर्गणा कहते हैं। इसी से हमारा • श्वासोच्छवास शरीर बनता है अतः औदारिक शरीर कहलाता है। • भाषा (२) वैक्रिय वर्गणा - स्वर्ग के देवताओं का तथा नरक गति के •कार्मण नारकी जीवों का शरीर वैक्रिय शरीर है। अतः इन्हें उनका वैक्रिय शरीर बनाने के लिए बाह्य वातावरण में से जो उस योग्य पुद्गल परमाणुओं का समूह ग्रहण करना पड़ता है वह वैक्रिय पुद्गल परमाणु वर्गणा कहलाती है। (३) आहारक वर्गणा - १४ पूर्वधारी मुनिराज महाविदेह आदि क्षेत्रों में तीर्थंकर के पास प्रश्न पछने जाते समय आहारक शरीर की रचना करते हैं। तद योग्य पुद्गल परमाणुओं को आहारक वर्गणा कहते हैं। इसी को ग्रहण कर वे आहारक शरीर बनाते हैं। (४) तैजस वर्गणा - आत्मा के साथ रहे हुए सूक्ष्म तैजस शरीर बनाने योग्य वर्गणा को तैजस वर्गणा कहते हैं। (५) श्वासोच्छवास वर्गणा - संसारस्थ सभी जीव श्वासोच्छ्वास लेते ही है। अतः श्वासोच्छ्वास लेने योग्य पुद्गल परमाणुओं को श्वासोच्छ्वास वर्गणा कहते हैं। जीव यही ग्रहण करता है। (११७) कर्म की गति नयारी
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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