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से जैन दर्शन शास्त्र में वर्गीकरण - विभाजन किया गया है। अनेक परमाणु संमिश्रितसम्मिलित होकर समूह रूप में - पिंडीत रूप में रहे उसे स्कंध कहते हैं। समान संख्या प्रमाण परमाणु वाले स्कंधों की एक वर्गणा बनती है, वर्गणा अर्थात् अनेक परमाणुओं के समूह विशेष । समस्त ब्रह्मांड में ऐसी १६ महावर्गणाएं है ऐसे जैन शास्त्रों में बताया गया हैं ।
(१) औदारिक अग्रहण योग्य महावर्गणा ।
(२) औदारिक ग्रहण योग्य महावर्गणा ।
(३) औदारिक तथा वैक्रिय शरीर के लिए अग्रहण योग्य महावर्गणा । (४) वैक्रिय शरीर के लिए ग्रहण योग्य महावर्गणा ।
(५) वैक्रिय तथा आहारक शरीर के लिए अग्रहण योग्य महावर्गणा ।
(६) आहारक शरीर के लिए ग्रहण योग्य महावर्गणा ।
(७) आहारक तथा तैजस शरीर के लिए अग्रहण योग्य महावर्गणा । (८) तैजस शरीर के लिए ग्रहण योग्य महावर्गणां ।
(९) तैजस शरीर और भाषा के लिए अग्रहण योग्य महावर्गणा । (१०) भाषा के लिए ग्रहण योग्य महावर्गणा ।
(११) भाषा और श्वासोच्छवास के लिए अग्रहण योग्य महावर्गणा । (१२) श्वासोच्छवास के लिए ग्रहण योग्य महावर्गणा ।
(१३) श्वासोच्छवास और मन के लिए अग्रहण योग्य महावर्गणा ।
(१४) मन के लिए ग्रहण योग्य महावर्गणा ।
(१५) मन और कर्म के लिए अग्रहण योग्य महावर्गणा ।
(१६) कर्म के लिए ग्रहण योग्य महावर्गणा ।
इस तरह ये १६ महावर्गणाएं है । इनमें ग्रहण योग्य वर्गणाएं आठ प्रकार की है। तथा अग्रहण योग्य वर्गणाएं भी आठ प्रकार की है। इसीलिए ८ + ८ = १६ बताई गई है । इनमें ८ ग्रहण योग्य वर्गणाओं का विशेष विचार करें। चौदह राजलोक परिमित इस लोक में सर्वत्र प्रसरी हुई अर्थात् काजल की डिब्बी में काजल ठूंस दूंसकर भरी हो इस तरह इस ब्रह्मांड में ये वर्गणाएं ठूंस-ठूंसकर भरी हुई है। एक सूंई प्रवेश करा सकें इतनी भी जगह अनंत ब्रह्माण्ड में खाली नहीं है। ऐसी प्रमुख ८ वर्गणा का चित्र इस प्रकार है।
वर्गणाओं का कार्यक्षेत्र
चित्र में दर्शाएं अनुसार समस्त लोक में ठूंस-ठूंसकर भरी हुई ये पुद्गल परमाणुओं के संमिश्रित समूह रूप है। इसी लोक में अनंत जीव भी रहते हैं। वर्गणाएं कर्म की गति नयारी
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