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________________ द्रव्य के ५ भेदों में पांचवा भेद जो पुद्गल का है उसके लक्षण तथा गुणधर्म का यह विवेचन यहां पर किया है। इससे पुद्गल का स्वरूप स्पष्ट समझ में आ जाय यह जरूरी है। समस्त संसार की अनंत जड़ वस्तुएं सभी पौद्गलिक है। जो भी आंखों से दिखाई देती है ऐसी किसी न किसी प्रकार के वर्ण-गंध-रस-स्पर्शादि वाली वस्तुएं पौद्गलिक है। पुद्गल जन्य पदार्थ दृश्यमान जगत सब पौद्गलिक है। यहां तक की हमारा शरीर भी पौद्गलिक है। वह भी पुद्गल से बना है,तथा आत्मा पर लगते कर्म भी पौद्गलिक है । ये शरीर तथा कर्मादि किस तरह पौद्गलिक है? किन पुद्गल परमाणुओं से बनते हैं? कौन से इनके घटक द्रव्य है ? इसका विवेचन आगे किया जा रहा है। परमाणु वर्गणा स्वरूप : ___ जैन शास्त्र में जिसे पुद्गल कहा है उसे ही आधुनिक विज्ञान ने MATTER -पदार्थ कहा है। पुद्गल यह जैन शास्त्रों द्वारा ही प्रयुक्त एक विशेष अर्थवाला शब्द है। इस शब्द का प्रयोग जैन शास्त्र बाह्य कहीं भी नहीं मिलता। पुद्गल की ४ अवस्था में जिसे स्कंध कहा जाता है उसे विज्ञान Molecule कहता है,और परमाणु को Atom कहा है। यह समस्त ब्रह्मांड़ अनंतानंत परमाणुओं से भरा हुआ है। पुद्गल द्रव्य का स्वतंत्र अस्तित्व दो स्वरूप में है। एक परमाणु स्वरूप और दूसर स्कंध स्वरूप है। महा समर्थ ज्ञानी की ज्ञानधारा में भी जिसके दो भाग संभव नहीं है ऐसा निर्विभाज्य सूक्ष्मतम पुद्गल का अणु ही परमाणु स्वरूप में कहलाता है। यही परमाणु २-४-६ आदि अधिक संख्या में एकत्रित हए हों तो उन्हें स्कंध कहा जाएगा। फिर वे द्वयणुकस्कंध, व्यणुकस्कंध, चतुर्णांस्कंध, पंचाणुस्कंध आदि एक एक अणु की. वृद्धि के आकार पर वे उतने परमाणुओं के बने हुए स्कंध कहलाएंगे। संस्थान अणुओं का स्कंध संख्याताणुकस्कंध एवं असंख्याताणुकस्कंध कहे जाएंगे। उसी तरह अनंत, अणुओं से बने हुए स्कंध पुद्गल पदार्थ को अनंताणुकस्कंध पदार्थ कहेंगे। इन परमाणुओं में संघट्टन (संघात)विघट्टन (विघात) की क्रिया सदा ही होती रहती है। अतः संघटन की क्रिया से कई परमाणु संमिश्रित होकर स्कंध तूटकर पुनः परमाणु स्वरूप में आकार स्वतंत्र रहते हैं। इस तरह जुडना ओर बिखरना यह पुद्गल का स्वभाव ही है । यहां जैनों ने परमाणु की संघट्टनविघट्टन आदि क्रिया में नैयायिकों की तरह ईश्वरेच्छा मानने की मूर्खता नहीं की है। जबकि पुद्गल का अपना स्वभाव ही है, उसी की क्रिया है फिर ईश्वरेच्छा मानने की आवश्यकता ही क्या है? ___ परमाणु और स्कंध रूप अस्तित्ववाले पुद्गल पदार्थ का भिन्न-भिन्न रूप कर्म की गति नयारी
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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