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________________ परिणाम विशेष है। प्रभा - सूर्योदय के पूर्व अरूणोदय का प्रकाश पौफटन के पूर्व का प्रत्यूह, प्रकाश जबकि किरणें नहीं निकली है वह प्रकाश प्रभा कहलाता है। या मकान में धूप न आती हो वह उप प्रकाश भी प्रभा है। तथा रत्नकांति, तेज आदि पौद्गलिक प्रभा है। आतप - सूर्य की सीधी धूप को आतप कहते हैं । अथवा सूर्यकांत मणि एवं सूर्य के उष्ण प्रकाश को आतप कहते हैं। वर्ण-गंध-रस-स्पर्शादि : इस चित्र में वर्ण गंध-रस-स्पर्शादि बताए गए हैं। काला-हरा-लालपीला-सफेद ये पांच प्रकाश के वर्ण होते हैं। सुगंध तथा दुर्गंध २ गंध है। खट्टातीखा-मीठा-तुरा एवं कडवा ये पांच प्रकार के रस है । तथा शीत,उष्ण,स्निग्ध,रूक्ष, लघु, गुरू अर्थात् हल्का-भारी, तथा मूदु,कर्कश ये ८ प्रकार के स्पर्श है। अजीव तत्त्व के पुद्गल विभाग का यह विवेचन किया है, चूंकि कर्म भी पौद्गलिक है पुद्गल परमाणुओं से जन्य है। अतः कर्म की पौद्गलिकता को समझने के लिए पुद्गल को पहचानना जरूरी है इसलिए पुद्गल का स्पष्ट विवेचन किया है। पुद्गल एक स्वतंत्र द्रव्य है। यह जीव नहीं, सजीव नहीं अजीव द्रव्य है, इतना ख्याल आना जरूरी है चेतन आत्मा ही एक मात्र जीव द्रव्य है। जबकि अन्य सभी अजीव द्रव्य है। अजीव काला वर्ण सुगंध @el 1. लाल • पीला THAPPY NS.उष्ण कर्म की गति नयारी
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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