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(४) काल • यह अजीव द्रव्य है । 'वर्तनालक्षणो काल:' वर्तना अर्थात् - परिवर्तन । नया - पुराना, आज का - कल का इत्यादि परिवर्तन कालानुसार होता है। यह अप्रदेशी होने से अस्तिकाय में गिना नही जाता है।
(५) पुद्गलास्तिकाय द्रव्य - पूरण- गलन स्वभाव वाला यह पुद्गल द्रव्य है अर्थात् बनने-बिगड़ने के स्वभाव वाले को पुद्गल द्रव्य कहते हैं । यह प्रदेश - समूहात्मक होने से सप्रदेशी अस्तिकाय द्रव्य है स्कंध - देश-प्रदेश और परमाणु इसकी ४ अवस्थाएं है।अणु - परमाणु सिर्फ पुद्गल के ही विभाग में गिने जाते हैं 'वर्ण-गंध-रस-स्पर्शात्मको पुद्गलः' जो वर्ण-गंध-रस - स्पर्शादि गुण वाला हो उसे पुद्गल कहते हैं । अतः जगत की सभी वर्णादि गुण वाली वस्तुएं पौद्गलिक कहलाती है । यह भी चौदह राजलोकव्यापी द्रव्य है।
अजीव द्रव्यू के १४ भेद
अधर्मास्तिकाय
धर्मास्तिकाय
स्कंध देश प्रदेश
काल
१
स्कंध देश प्रदेश
आकाशास्तिकाय
स्कंध देश प्रदेश पुद्गलास्तिकाय
↓
४ = १४
स्कंध देश प्रदेश परमाणु .
एक अखंड द्रव्य स्कंध कहलाता है । उसी स्कंध का अविभाजित अल्प भाग, छोटा भाग देश कहलाता है । तथा उसी स्कंध और देश का अविभाजित एक छोटा सूक्ष्मांश प्रदेश कहलाता है। तथा वही सूक्ष्मतम अंश प्रदेश जो स्कंध देश से अलग हो जाता है तब वह परमाणु कहलाता है। धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय में तीनों सर्वलोक व्यापी अखंड स्कंध द्रव्य है। असंख्य प्रदेशी है। परंतु इनका एक भी प्रदेश अलग नहीं होता है । अतः इनमें परमाणु का भेद नहीं पड़ता है ।
पुद्गल के चार भेद है (१) स्कंध - कोई भी पौद्गलिक एक अखंड वस्तु स्कंध कहलाती है । चाहे वह छोटी हो या बड़ी हो परंतु एक अखंड होनी चाहिए (२) इसी का अविभाजित छोटा भाग देश कहलाता है (३) उसी का एक सूक्ष्मतम अंश जो अविभाजित हो, स्कंध से अलग न हुआ हो वह प्रदेश कहलाता है (४) वही सूक्ष्मतम अदृश्य प्रदेश स्कंध से अलग हो जाय, विभक्त हो जाय वह स्वतंत्र रूप से अणु कहलाता है। जैन दर्शन में अणु को ही परमाणु कहते हैं । अणु-परमाणु में कोई भेद नहीं है। १११
कर्म की गति नयारी