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________________ होने से जीव द्रव्य से सर्वथा भिन्न अजीव द्रव्य कहलाता है। अजीव स्वयं कर्ता भोक्ता नहीं है। अजीव के मुख्य भेद में जो धर्मास्तिकाय आदि है उनका मुख्य स्वरूप इस प्रकार है - (१) धर्मास्तिकाय द्रव्य - यह गति सहायक द्रव्य है। जीव और पुद्गल परमाणु को चौदह राजलोक में गति करने में सहायक माध्यम धर्मास्तिकाय नामक द्रव्य है। यह चौदह राज परिमित लोक व्यापी द्रव्य है। स्वयं निष्क्रिय, अरूपी असंख्य प्रदेशात्मक अस्तिकाय द्रव्य है। (२) अधर्मास्तिकाय द्रव्य - यह स्थिति सहायक द्रव्य है । जीव एवं पुद्गल परमाणु जो गति करने वाले द्रव्य है उनको रूकने के लिए स्थिति में सहायक यह अधर्मास्तिकाय द्रव्य है। यह भी लोक व्यापी अरूपी द्रव्य है। स्वयं निष्क्रिय है। जीवादि इसकी सहायता से स्थिति धारण करते हैं । असंख्य प्रदेशी अस्तिकाय युक्त (१) धर्मास्तिकाय (२) अधर्मास्तिकाय (३) आकाशास्तिकाय|| (५) पुद्गलास्तिकाय | (४) काल UAE द्रव्य है। (३) आकाशास्तिकाय द्रव्य - लोकालोक व्यापी यह अनंत आकाश द्रव्य है। जीव-पुद्गल-आदि द्रव्यों को रहने के लिए जगह देने वाला, अवकाश प्रदान करने वाला यह आकाशास्तिकाय द्रव्य है। यह भी सप्रदेशी होने से अस्तिकाय युक्त अरूपी द्रव्य कहलाता है। यह सभी अन्य द्रव्यों के लिए आधारभूत द्रव्य हैं। हम सब इसी में रहते हैं। कर्म की गति नयारी (११०
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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