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________________ - परमाणु का स्वरूप :- स्कंध स्कंध का सूक्ष्मतम प्रदेश जो स्कंध से -देश विभाजित होकर अलग हो गया है अब वह स्वतंत्र रूप से स्वयं अविभाजित हो वह परमाणु कहलाता है। प्रदेश परमाणु अछेद्य-अभेद्य-अदृश्य-अकाट्य-अदाह्य - परमाणु होते हैं। जिनको छेदन करने से छेद नहीं सकते क्योंकि वे अछेद्य है, भेदन करने पर भेद नहीं सकते वह अभेद्य, आंखो से जो दिखाई नहीं देते वह अदृश्य तथा जो जलते भी नहीं वे अदाह्य परमाणु होते हैं। साथ ही Undivideble अविभाज्य होते हैं। विज्ञान ने अणु को एक स्वतंत्र सूक्ष्मतम इकाई माना है। पहले अणु को अविभाजित मानते थे अब विभाज्य मानते हैं। विस्फोट करते हैं। एक परमाणु के साथ इलेक्ट्रॉन, प्रोटोन, न्युट्रॉन और अब पॉजिट्रॉन को संयुक्त रूप से माना है। अतः ऐसा लगता है कि यह परमाणु के बजाय स्कंध हो गया। परमाणु तो एक अणु ही होता है। जब वह द्वयणुक, त्र्यणुक, चतुर्णक आदि अधिक संख्या में यदि दो-तीन-चार-पांच अणु मिलते हैं तब वे अणु-अणु नहीं रहते पुनः स्कंध का रूप धारण कर लेते हैं। संघात-विघात की क्रिया से ही पुद्गल में परिवर्तन होता है। संघात से परमाणु रूप बन जाता है। मिट्टी के परमाणु असंख्य-अनंत की संख्या में इकट्ठे होकर घड़ा बन जाते है। अब वह एक स्कंध कहलाएगा। एक दिन घडा फुट गया और पुनः मिट्टी के कणकण में विभाजित हो गया। उस मिट्टी का एक सूक्ष्मतम अविभाजित अंश परमाणु कहलाएगा। इस तरह संसार में संघात-विघात की क्रियाएं सतत चलती रहती है। अतः अणु स्कंध में और स्कंध पुनः अणु रूप में सतत परिवर्तित होते ही रहते हैं। परमश्चासौ अणुः परमाणुः । जो परम सूक्ष्म अणु है वही परमाणु है। उसे ही अणु कहते हैं । अणु शब्द के आगे ही परम विशेषण लगा दिया है। अर्थ की दृष्टि से अणु और परमाणु दोनों शब्द समाधक है। अर्थ भेद नहीं है । ये परमाणु पुद्गल द्रव्य के ही सूक्ष्मतम अंश है। स्कंध देश प्रदेश परमाणु • स्कंध-देश-प्रदेश-परमाणु ये चारों अवस्था पदगल की ही है अतः परमाणुओं में भी पुद्गल के गुणधर्म मौजुद रहते हैं। वर्ण-गंध-रस-स्पर्श-शब्द आदि जो पुद्गल के गुण धर्म है वे परमाणु में रहते हैं। पांच वर्षों में से कोई १ वर्ण, २ गंध में से कोई एक गंध, पांच रसों में से कोई १ रस और ८ स्पर्श में से कोई २ स्पर्श । या तो शीत या उष्ण, अथवा तो स्निग्ध या रूक्ष, अथवा गुरू (भारी) या लघु (हल्का ) इस तरह परमाणु में वर्ण-गंध-रस-स्पर्श-ध्वनि आदि गुणधर्म रहते ही हैं। तभी परमाणु के स्कंध बनने से उसमें प्रगट होते हैं। यदि रेती के एक-एक कण में भी कर्म की गति नयारी
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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