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कालवादी, स्वभाववादी के बाद तीसरे क्रम पर नियतिवादी दार्शनिक आए । एकान्त नियतिवाद को मानने वाले नियतिवादियों का कहना है कि - सभी पदार्थ नियतरूप से ही उत्पन्न होते हैं। नियतरूप का अर्थ है - वस्तु का वह असाधारण धर्म जो उसके सजातीय और विजातीय वस्तुओं से व्यावृत्त होता है। सभी पदार्थ किसी ऐसे तत्त्व से उत्पन्न होते हैं जिससे उत्पन्न होने वाले पदार्थों में नियतरूपता का नियमन होता है, पदार्थों के कारण भूत उस तत्त्व का ही नाम 'नियति' है । उत्पन्न होने वाले पदार्थों में नियति मूलक घटनाओं का ही सम्बन्ध होता है । इसलिये भी सभी को नियतिजन्य मानना आवश्यक है । उदाहरण के रूप में कहते हैं कि - तीक्ष्ण शस्त्र का प्रहार होने पर सभी नहीं मरते परन्तु कुछ ही मरते हैं, कई जीवित रहते हैं । एक ही औषधि के सेवन से नियत लोग ही अच्छे होते हैं, कई अनेक मरते हैं । अतः प्राणियों का जन्म-मरण नियति पर नियत है, निर्भर है जिसका मरण जब नियति सम्मत होता है तभी वह मरता है, अन्यथा नहीं । जिसका जीवन जब नियति सम्मत रहता है तब वह जीवित रहता है । मृत्यु का प्रसङ्ग आने पर भी वह नहीं मरता । यह नियतिवादी का प्रतिपादन है । श्वेताश्वतर उपनिषद् में इसका उल्लेख है । नियतिवादी कहते हैं कि संसार में सब कुद निश्चित प्रकार से नियत है,
और नियत रहेगा । सभी जीव नियति के चक्र में फंसे हुए हैं । इस चक्र में परिवर्तन करने की जीव की शक्ति नहीं है। नियति एक चक्र है जो सतत घूमता रहता है । जीवों को नियत क्रमशः इधर-उधर घूमाता रहता है।
तथागत बुद्ध के सामने पूरण काश्यप नियतिवाद का समर्थन करता था। ऐसा त्रिपिटक में उल्लेख है। भगवान महावीरस्वामी के सामने मंखली गोशालक नियतिवाद का समर्थक था। महावीर प्रभु ने अपने काल में अनेक विख्यात नियतिवादियों के मत में परिवर्तन कराया है ऐसा उपासकदशाङ्ग सूत्र के अध्ययन ७ में उल्लेख है । धीरे-धीरे आजीवकमत जैन परम्परा में सम्मिलित होकर लुप्त हो गया। श्री भगवतीसूत्र में तथा श्री सूत्रकृतांग आगम में नियतिवाद का वर्णन किया गया है। अक्रियावाद भी नियतिवाद से मिलता-जुलता है। नियतिवाद की मुख्य घोषणा यह है किप्राप्तव्यो नियति बलाश्रयेण योऽर्थः, सोऽवश्यं भवति नृणां शुभोऽशुभो वा । भूतानां महति कृतेऽपि हि प्रयत्ने, नाऽभाव्यं भवति न भावीनोऽस्ति नाशः ।।
अर्थात्-जो कार्य जिस कारण से जिस रूप में उत्पन्न होने का नियति से निर्दिष्ट होता है वह उस समय उसी कारण से उसी रूप में उत्पन्न होता है। अभावि हो नहीं सकता और भावि टल नहीं सकता, अर्थात् जो वस्तु जिससे नहीं होने वाली है वह बहत प्रयत्न करने पर भी उससे नहीं होती, और जो होने वाली होती है उसका
-कर्म की गति नयारी