SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्तन्तेऽथ निवर्तन्ते, कामचारपराङमुखा ।। दूसरे पक्ष में स्वभाववादी आ रहे हैं। स्वभाववादी कहते हैं कि-गर्भ, बालक, शुभ, स्वर्ग आदि जो भी कोई कार्य संसार में होता है वह सब स्वभाव के कारण ही होता है। बिना स्वभाव के कुछ भी नहीं होता। सभी भाव कार्य अपने अपने स्वभाव में अवस्थित होते हैं । भावों (पदार्थों) का नाश भी उनके स्वभाव से ही नियत-देशकाल में ही होता है, क्योंकि वे पदार्थ इच्छानुसार स्वतंत्र न होकर अपने स्वभाव के प्रति परतंत्र होते हैं। मूंग का पाक भी सिर्फ काल से ही नहीं होता। क्योंकि अश्वमाष-पथरिले उडिद या पथरिले (कोरडा) मूंग घण्टों या दिनों तक भी सिगड़ी पर गरम पानी में उबलते रहे तो भी उसमें पाक नहीं आता है। अतः काल नहीं स्वभाव प्रमुख कारण है। श्वेताश्वेतर उपनिषद में स्वभाववाद का उल्लेख है। वहां तो यहां तक लिखा है कि-जो कुछ होता है वह स्वभाव से ही होता है। स्वभाव के अतिरिक्त कर्म या ईश्वरादि कोई कारण नहीं है । बुध्द चरित एवं गीता, महाभारत में स्वभाववाद का उल्लेख है। दूसरे गणधर अग्निभूति ने भी कर्म की शंका के विषय में भगवान महावीरस्वामी से चर्चा करते समय स्वभाववाद की चर्चा की है। वे भी स्वभाव को ही प्रमुख कारण मानने के पक्ष की बात करते थे, तब प्रभु ने कहास्वभाव से जगद्-वैचित्र्य मानना अयुक्त है। चूंकी-स्वभाव क्या है? क्या स्वभाव वस्तु विशेष है? या वस्तु धर्म है? स्वभाव को वस्तु भी नहीं कह सकते । वह द्रव्य स्वरूप में दिखाई भी नहीं देती। स्वभाव मूर्त है या अमूर्त ? यदि मूर्त मानोगे तो स्वभाव कर्म के जैसा ही है। फिर तो कर्म का दूसरा नाम स्वभाव हो जाएगा। यदि अमूर्त मानोगे तो स्वभाव किसी का भी कर्ता सिध्द नहीं होगा। जैसे आकाश अमूर्त है तथा कर्ता नहीं है वैसे ही स्वभाव भी अमूर्त होगा तो कर्ता नहीं होगा। शरीरादि मूर्त पदार्थों का कारण भी मूर्त ही होना चाहिए। अतः स्वभाव भी कर्ता नहीं हो सकता। अच्छा, यदि स्वभाव को वस्तु धर्म मान लो । अर्थात् स्वभाव सिर्फ आत्मा का धर्म मानें तो वह भी अमूर्त धर्म सिध्द होगा। अमूर्त से मूर्त शरीरादि कैसे उत्पन्न होंगे? यदि स्वभाव को अमूर्त वस्तु का धर्म माना जाय तो ठीक ही है। वह कर्म के पुद्गल पर्याय विशेष रूप में हआ । इस तरह स्वभाव कर्म के रूप में सिध्द हो जाएगा । अतः कर्म से कुछ नहीं होता सब कुछ स्वभाव से ही होता है यह पक्ष भी न्यायसंगत सिध्द नहीं होता है। अतः केवल स्वभाववाद पक्ष भी जगद् वैचित्र्य का कारण सिद्ध नहीं हो सकता। नियतिवाद : नियतेनैव रुपेण सर्वे, भावा भवन्ति यत् । ततो नियतिजा ह्येते, तत्स्वरूपानुवेधतः ।। कर्म की गति नयारी (९२)
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy