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________________ कभी नाश याने विघटन नहीं हो सकता। इस तरह नियति-वाद की पुष्टि की गई है। सब कुछ ठीक लेकिन निरपेक्ष वृत्ति से एक मात्र नियति को ही कारण मानने से भी नहीं चलेगा चूंकि नियति सत्ता का अस्तित्व किस स्वरूप में है? क्या यह वस्तु विशेष है या वस्तु धर्म? क्या यह मूर्त है या अमूर्त ? क्या यह दृश्यमान कर्ता है या अकर्ता? क्या यह सिर्फ काल है या अकाल? नियतिः स्वतः स्वतंत्र सत्ता है या परतंत्र-पराधीन है ? ऐसे कई प्रश्न खड़े होते हैं। अतः नियति सर्वथा नहीं है ऐसी भी बात नहीं है । परंतु सिर्फ नियतिवाद को ही एक स्वतंत्र कारण मानकर चलना संभव नहीं है। अन्य कोई कारण न स्वीकारें और एक मात्र नियति ही समस्त संसार का कारण है या जीवों के सुख-दुःखादि का कारण है यह कहना भी युक्तिसंगत सिद्ध नहीं होगा। पूर्वकृत-कर्मवाद : - न भोक्तृव्यतिरेकेण, भोग्यं जगति विद्यते । न चाकृतस्य भोक्ता, स्यान्मुक्तानां भोगभावतः।। भाग्यं च विश्वं सत्त्वानां, विधिना तेन तेन यत् । दृश्यतेऽध्यक्षमेवेदं तस्मात्,तत् कर्मज हि तत् ।। - चौथे पक्षवाले-पूर्वकृत कर्मवादी है, वे कर्मवादी कहते हैं कि इस चराचरात्मक जगत् में भोग्य की सत्ता भोक्ता की सत्ता पर ही निर्भर है, क्योंकि भोग्य यह सम्बन्धी सापेक्ष पदार्थ है। अतः भोक्तारूप संबंधी के अभाव में उसका अस्तित्व ही नहीं हो सकता । भोक्ता भी अकृत कर्म का भोग नहीं कर सकता क्योंकि जो जिसके व्यापार से उत्पन्न होता है वही उसका भोग्य होता है । यदि अकृत कर्म का भी भोग मानेंगे तो मोक्ष में बिराजमान मुक्तात्मा में भी भोग की आपत्ति आएगी। अतः जगत् भोक्ता के कर्मों से ही उत्पन्न होता है । सृष्टि की कारणता जीवकर्मों में ही है। अन्य सभी कारण व्यभिचरित है यही सुसंगत सिद्ध होता है। अतः जीवों का पूर्वोपार्जित कर्म ही सुख-दुःखादि का कारणभूत है। इस तरह पूर्वकृत या पूर्वोपार्जित कर्म को कारणरूप में स्वीकार किया गया है। पूरुषार्थवाद : सन्मतितर्क महाग्रन्थ में वादीमतंगज सिद्धसेन दिवाकरसूरि महाराज ने पांचवे पक्ष में पुरुषार्थवाद की चर्चा करते हुए “पुरिसकारणेगंता" शब्द से 'पुरुष कारण विशेष' की मान्यता का समर्थन किया है। कई लोग काल-स्वभाव नियति-पूर्वोपार्जित कर्म आदि तथा ईश्वरादि कोई कारण न स्वीकारते हुए एकमात्र पुरूषार्थवाद का ही पक्ष मानते हैं । ये सब कुछ नहीं है। पुरुष अपने प्रयत्न विशेष से कर्म की गति नयारी (९४)
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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