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________________ अरिहन्तदेव स्वरूप : ३१ (१०) जुगुप्सा-भगवान् जुगुप्सा-घृणा से बिलकुल रहित हैं । घृणा रागी और द्वपी आत्मा को ही उत्पन्न हो सकती है। भगवान् तो राग-द्वेष से सर्वथा रहित हैं। घृणा वाला पुरुष मार्दव भाव से रहित होता है जबकि भगवान् मार्दव गृण से विभूषित हैं । वीतराग प्रभु अपने केवलज्ञान में प्रत्येक पदार्थ के अनन्त-अनन्त पर्यायों को यथावस्थित रूप में देखते हैं । तब भला वे किसी पदार्थ पर घृणा कैसे कर सकते हैं ? अतः वे जगप्सा दोष से भी रहित हैं। (११) शोक-भगवान् शोक से भी रहित हैं, क्योंकि हर्ष और शोक राग-द्वषयक्त या संयोग-वियोग के रस से युक्त व्यक्ति को ही हो सकता है। खासकर इष्ट वस्तु के वियोग से शोक, चिन्ता एवं मानसिक अशान्ति होती है। अरिहन्त भगवान् राग-द्वेषरहित हैं, उनके लिए कोई भी वस्तु न तो इष्ट है, न अनिष्ट तथा परवस्तु के साथ उनका राग-द्वष युक्त संयोग भी नहीं होता । अतः वियोग का उनके लिए कोई प्रश्न ही नहीं है। अतः भगवान् शोक रूप दोष से रहित हैं। (१२) काम-भगवान् कामदोष से भी सर्वथा रहित होते हैं, क्योंकि कामवासना मोहनीय कर्म के उदय से ही होती है, भगवान् तो मोहनीय कर्म का पहले ही क्षय कर चुकते हैं और फिर कामी आत्मा कभी सर्वज्ञ हो ही नहीं सकती जबकि भगवान् सर्वज्ञ होते हैं। अतः वे कामदोष से सर्वथा मुक्त होते हैं। (१३) मिथ्यात्व-भगवान् मिथ्यात्व के दोष से भी सर्वथा मुक्त होते हैं। पदार्थों के स्वरूप को विपरीत रूप से जानना-मानना और विपरीत श्रद्धा रखना मिथ्यात्व है। मिथ्यात्व-दशा में पड़े हुए जीव सद्बोध से रहित होते हैं। मिथ्यात्वग्रस्त जीव बार-बार जन्म-मरण करता है, नाना प्रकार के मिथ्या प्रपंच संसार में रचता है। किन्तु भगवान के दर्शनमोहनीय कर्म का क्षय हो जाने से वे मिथ्यात्व की समस्त प्रकृतियाँ नष्ट कर चुके हैं, केवल ज्ञान-केवलदर्शन उत्पन्न हो जाने के कारण वे पूर्ण ज्ञान और पूर्ण बोधि (दर्शन) से युक्त हैं। तीर्थकर पद प्राप्त करने के बाद भावी जन्म-मरण के चक्र से सर्वथा रहित हो जाते हैं, सांसारिक मिथ्या प्रपंच करने का तो उनके लिए कोई प्रश्न ही नहीं है। अतः तीर्थंकर भगवान् मिथ्यात्व दोष से सर्वथा रहित होते हैं। (१४) अज्ञान–सम्यग्ज्ञान न होना अथवा विपरीत ज्ञान होना
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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